Book Title: Kuvayalanand
Author(s): Bholashankar Vyas
Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan

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Page 360
________________ अत्युक्त्यलङ्कारः २६३ __ इयमौदार्यात्युक्तिः। शौर्यात्युक्तिर्यथा राजन् ! सप्ताप्यकूपारास्त्वत्प्रतापानिशोषिताः। पुनस्त्वद्वैरिवनिताबाष्पपूरेण पूरिताः॥ संपदत्युक्तावुदात्तालङ्कारः । शौर्यात्युक्तावत्युक्त्यलङ्कार इति भेदमाहुः । अनयोरनवद्याङ्गि ! स्तनयोजृम्भमाणयोः । अवकाशो न पर्याप्तस्तव बाहुलतान्तरे ।। अल्पं निर्मितमाकाशमनालोच्यैव वेधसा। इदमेवंविधं भावि भवत्याः स्तनमण्डलम् ।। इति सदसदुक्तितारतम्येनातिशयोक्त्यत्युक्त्योर्भेदः ।। १६३ ।। होता है। जैसे, (कोई कवि राजा की दानवीरता की प्रशंसा करते कहता है)हे राजन् , तुम्हारे दाता बनने पर कल्पवृक्ष भी याचक बन गये हैं। ___ यहाँ राजा की उदारता (दानशीलता) की अत्युक्ति है। शौर्य की अत्युक्ति का उदाहरण निम्न है : कोई कवि किसी राजा की वीरता का अत्युक्तिपूर्ण वर्णन करता है :-हे राजन् , तुम्हारी प्रतापाग्नि के ताप से सातों समुद्र सूख गये थे, किंतु तुम्हारे शत्रुओं की स्त्रियों के अश्रुप्रवाह से वे फिर भर दिये गये। उदात्त तथा अत्युक्ति में यह भेद है कि सम्पत्ति (समृद्धि)का अत्युक्तिमय वर्णन होने पर उदात्त होता है, शौर्यादि का अत्युक्तिमय वर्णन होने पर अत्युक्ति । __ अतिशयोक्ति तथा अत्युक्ति दोनों में खास भेद यह है कि अतिशयोक्ति में असदुक्ति मात्र होती है, जब कि अत्युक्ति अत्यन्त असदुक्ति होती है । इस प्रकार अतिशयोक्ति तथा अत्युक्ति में मात्रात्मक या तारतमिक भेद है। इसी को स्पष्ट करने के लिए यहाँ दोनों का एक एक उदाहरण देते हैं, जिससे यह भेद और स्पष्ट हो जाय । ___ 'हे प्रशस्त अंगों वाली सुन्दरि, इन बढ़ते हुए स्तनों के लिए तेरे दोनों बाँहों के बीच पर्याप्त स्थान नहीं है।' (इस पच में सम्बन्धे असम्बन्धरूपा अतिशयोक्ति है। यहाँ भी कवि ने अतथ्य या असत् उक्ति का प्रयोग किया है, पर वह उतनी प्रबल नहीं है, जितनी कि अगले पद्य में।) ___ ब्रह्मा ने यह सोचे बिना ही कि तुम्हारा स्तनमण्डल इतना विशाल हो जायगा, आकाश बहुत छोटा बनाया। (यहाँ अत्युक्ति है, क्योंकि अत्यन्त असत, उक्ति का प्रयोग पाया जाता है।) टिप्पणी-अत्युक्ति का समावेश अतिशयोक्ति में नहीं हो सकता। यद्यपि यहाँ भी अतथ्य का वर्णन तो होता है, तथापि वह अद्भुत होता है। अद्भुत विशेषण के कारण यहाँ लक्षण से अत्यन्तातथ्यरूप वर्णन की भावना है। (अनयोरित्यत्रासदुक्तिमात्रम् । अल्पमिति पद्ये स्वत्यन्तासदुक्तिरिति तारतम्येनेत्यर्थः । तथा चाद्धतेति विशेषणादत्यन्तातथ्यरूपत्वलाभानातिशयोक्तावतिव्याप्तिरिति भावः। (चन्द्रिका पृ० १७८)

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