Book Title: Kuvayalanand
Author(s): Bholashankar Vyas
Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan

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Page 362
________________ विध्यलङ्कारः २६५ M प्रागल्भ्यं न युद्धे व्युत्पत्तिग्रहोऽस्तीत्युपहासं गर्भीकरोति, तच्च 'कितव' इत्यनेनाविष्कृतम् । यथा वा न विषेण न शस्त्रेण नाग्निना न च मृत्युना । अप्रतीकारपारुष्याः स्त्रीभिरेव स्त्रियः कृताः ॥ अत्र स्त्रीणां विषादिनिर्मितत्वाभावः प्रसिद्ध एव कीर्त्यमानस्तासा विषाद्यतिशायि क्रौर्यमित्यमुमर्थ व्यक्तीकरोति, स चाप्रतीकारपारुष्या इति प्रतीकारवदुभ्यो विषादिभ्यस्तासां विशेषं दर्शयता विशेषणेनाविष्कृतः ।। १६५ ।। ९९ विध्यलंकारः सिद्धस्यैव विधानं यत्तमाहुर्विध्यलंकृतिम् । पञ्चमोदचने काले कोकिलः कोकिलोऽभवत् ॥ २६६ ॥ निर्ज्ञातविधानमनुपयुक्तिबाधितं सदर्थान्तरगर्भीकरणेन चास्तरमिति तं विधिनामानमलङ्कारमाहुः । उदाहरणे कोकिलस्य कोकिलत्वविधानमनुपयुक्तं सदतिमधुरपञ्च मध्वनिशालितया सकलजनहृद्यत्वं गर्भीकरोति । तच 'पचमोदने' इति कालविशेषणेनाविष्कृतम् । निर्शात निषेध का वर्णन इसलिए किया गया है कि उस उक्ति से 'अरे द्यूतकार तेरी कुशलता तो अक्षक्रीडा में ही है, युद्ध के विषय में तू क्या जाने' इस प्रकार का उपहास यञ्जित हो रहा है। इसको 'कितव' शब्द के द्वारा प्रगट किया गया है। 1 अथवा जैसे त्रियों की परुषता ( कठोरता ) का कोई प्रतीकार नहीं है। वे न तो विष से बनाई गई है, न शस्त्र से, न अभि से या मृत्यु से ही । वस्तुतः स्त्रियों की रचना स्त्रियों के ही उपादान कारण से की गई है । यहाँ स्त्रियों का विषादि के द्वारा न बनाया जाना प्रसिद्ध ही है, किन्तु उसका वर्णन इसलिए किया गया है कि वह इस बात की व्यञ्जना करा सके कि स्त्रियाँ विषादि से भी अधिक क्रूर हैं। यह व्यञ्जना 'अप्रतीकार - पारुष्याः' पद के द्वारा हो रही है, जिसका भाव है कि विषादि का तो कोई इलाज भी है, पर स्त्रियों की परुषता का कोई इलाज नहीं, अतः इन सबसे बढ़ कर क्रूर हैं । ९९. विधि अलंकार १६६ - जहाँ पूर्वतः सिद्ध वस्तु का पुनः विधान किया जाय, वहाँ विधि अलकार होता है (यह प्रतिषेध अलंकार का बिलकुल उलटा है ), जैसे, पञ्चम स्वर के प्रगट करने के समय ही कोयल कोयल होती है । जहाँ प्रसिद्ध पूर्वसिद्ध वस्तु को, जो किसी युक्ति के द्वारा बाधित नहीं है, फिर से वर्णित किया जाय, वहाँ किसी अन्य अर्थ की व्यंजना के अतिशय सौन्दर्य के कारण इसे विधि नामक अलंकार कहते हैं। उदाहरण में, कोकिल का कोकिल बनना अनुपयुक्त है, इसके द्वारा मधुर पञ्चमस्वर के कारण समस्त विश्व को प्रिय होने का भाव व्यंग्य है। यह 'पञ्चमोदंचने काले' के द्वारा स्पष्ट किया गया है । अथवा जैसे.

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