Book Title: Kuvayalanand
Author(s): Bholashankar Vyas
Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan

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Page 364
________________ हेत्वलकारः २६७ यथा वा एष ते विद्रुमच्छायो मरुमार्ग इवाधरः । कस्य नो तनुते तन्वि ! पिपासाकुलितं मनः ? ॥ माने नेच्छति वारयत्युपशमे दमामालिखन्त्यां ह्रियां स्वातन्त्र्ये परिवृत्य तिष्ठति करौ व्याधूय धैर्य गते । तृष्णे | त्वामनुबध्नता फलमियत्प्राप्तं जनेनामुना यत्स्पृष्टो न पदा स एव चरणौ स्पष्टुं न सम्मन्यते ।। इत्याधुदाहरणम् ।। १६७ ॥ हेतु हेतुमतोरैक्यं हेतुं केचित् प्रचक्षते । लक्ष्मीविलासा विदुषां कटाक्षा वेङ्कटप्रभोः ॥ १६८ ॥ यहाँ 'चन्द्रमा का उदय होना' हेतु (कारण) है तथा रमणियों के मान का खण्डन होना हेतुमान् (कार्य) है। यहाँ चन्द्रोदय का वर्णन रमणीमानच्छेद के साथ किया गया है, अतः यह हेतु नामक अलंकार का उदाहरण है। इसी अलंकार के अन्य उदाहरण निम्न हैं :__ हे सुन्दरि, मरुस्थल के मार्ग के समान विद्रुमच्छाय (विद्रुम मणि के समान लाल कांतिवाला वृक्षों की छाया से रहित) तेरा अधर, बता तो सही, किसके मन को प्यास से व्याकुल नहीं बना देता? ___ यहाँ 'विद्रुमच्छायः' में श्लेष है। इस पद्य में तन्वी के पनरागसदृश अधरोष्ठ हेतु (कारण) तथा उसके दर्शन से चुंबनेच्छा का उदय हेतुमान् (कार्य) दोनों का साथ साथ वर्णन किया गया है, अतः यह हेतु अलंकार का उदाहरण है। हेतु का अन्य उदाहरण निम्न है : कोई कवि तृष्णा की भर्त्सना करता कह रहा है। जब मान की इच्छा न थी, शांति मना कर रही थी, लज्जा पृथ्वी पर गिर पड़ी थी, स्वतन्त्रता मुँह मोड़े खड़ी थी, धैर्य हाथ मल मल कर पछता कर चला गया था, हे तृष्णे, उस समय तेरा अनुसरण करते हुए व्यक्ति ने जो फल प्राप्त किया, वह यह है कि जिस व्यक्ति को हम पैर से भी छूना पसंद नहीं करते थे, वही नीच आज अपने पैर भी नहीं पकड़ने देता। __ यहाँ तृष्णा रूप हेतु का वर्णन उसके कार्य के साथ साथ किया गया है, अतः इसमें हेतु अलंकार है। १६८-कुछ आलंकारिक हेतु तथा हेतुमान् के अभेद (ऐक्य) को हेतु अलंकार मानते हैं । जैसे, वेंकटराज (नामक राजा) के कटाक्ष विद्वानों के लिए लचमी के विलास हैं। टिप्पणी-यह उद्भटादि आलंकारिको का मत है । उनकी परिभाषा यह है :'हेतुमता सह हेतोरभिधानमभेदताहेतुः।' यहाँ वेंकटराज के कृपाकटाक्ष विद्वानों के लिए सम्पत्ति के कारण हैं, यह भाव अभीष्ट है, किन्तु हेतु (कटाक्ष) तथा हेतुमान् (लक्ष्मीविलास) दोनों का ऐक्य स्थापित कर दिया गया है, यहाँ कटाक्षों को ही विद्वानों के लक्ष्मीविलास बताकर दोनों में सामाना. धिकरण्य स्थापित कर दिया गया है, अतः हेतु नामक अलंकार है।

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