Book Title: Kuvayalanand
Author(s): Bholashankar Vyas
Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan

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Page 359
________________ २६२ कुवलयानन्दः ९५ उदात्तालङ्कारः उदात्तमृद्धेचरितं श्लाघ्यं चान्योपलक्षणम् । सानो यस्याभवद्युद्धं तद्धृर्जटिकिरीटिनोः ॥ १६२ ॥ इदं श्लाघ्यचरितस्यान्याङ्गत्वे उदाहरणम् । ऋद्ध्युदाहरणं यथा [विधुकरपरिरम्भादात्तनिष्यन्दपूर्णैः शशदृषदुपक्लुप्तैरालवालस्तरूणाम् । विफलितजलसेकप्रक्रियागौरवेण, व्यरचि स हृतचित्तस्तत्र भैमीवनेन ।।] रत्नस्तम्भेषु संक्रान्तैः प्रतिबिम्बशतैर्वृतः । ज्ञातो लंकेश्वरः कृच्छ्रादाञ्जनेयेन तत्त्वतः ॥ १६२ ।। ९६ अत्युक्त्यलङ्कारः अत्युक्तिरद्भूतातथ्यशौर्यौदार्यादिवर्णनम् । त्वयि दातरि राजेन्द्र ! याचकाः कल्पशाखिनः ॥ १६३ ॥ यहाँ भूतकाल की घटना को नायक ने वर्तमान के ढंग पर कहा है। अतः भाविक अलंकार है।) __९५. उदात्त अलंकार १६२-जहाँ समृद्धि का वर्णन हो, अथवा किसी अन्य वस्तु के अंग के रूप में श्लाघ्य चरित का वर्णन हो, वहाँ उदात्त अलंकार होता है, जैसे (यह वही पर्वत है) जिसके शिखर पर शिव और अर्जुन का युद्ध हुआ था। यहाँ कारिकाध का उदाहरण श्लाघ्य चरित वाला उदाहरण है । समृद्धि के वर्णन वाला उदाहरण निम्न है:__ नैषधीय चरित के द्वितीय सर्ग से दमयन्ती के उपवन का वर्णन है। 'दमयन्ती के उस उपवन ने; जिसमें चन्द्रमा की किरणों के आलिंगन (स्पर्श) से चूते हुए रस से भरे, चन्द्रकान्तमणियों के बने वृक्षों के आलवाल के द्वारा वृक्षों की जलसेक क्रिया व्यर्थ हो गई थी; हंस का मन हर लिया (हंस को हृतचित्त बना दिया)। यहाँ दमयन्ती के उपवन की समृद्धि का वर्णन पाया जाता है, अतः उदात्त अलंकार है। इसी का दूसरा उदाहरण यह है: हनुमान् वास्तविक लंकेश्वर (रावण) को इसलिए कठिनता से जान पाये कि वह सभाभवन के रत्नस्तम्भों में प्रतिफलित सैकड़ों प्रतिबिंबों से घिरा हुआ था। यहाँ रावण के सभाभवन की समृद्धि का वर्णन होने से उदात्त अलंकार है। ९६. अत्युक्ति अलंकार १६३-जहाँ शौर्य, उदारता आदि का अद्भुत तथा झूठा (अतथ्य) वर्णन किया जाय, (जहाँ किसी के शौर्यादि को झूठे ही बढ़ा चढ़ा कर बताया जाय), वहाँ अत्युक्ति अलंकार

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