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कुबलयानन्दः
शुद्धो यथा
अकृशं कुचयोः कृशं विलग्ने विपुलं चक्षुषि विस्तृतं नितम्बे । अधरेऽरुणमाविरस्तु चित्ते करुणाशालि कपालिभागधेयम् ॥ २३ ॥
८-१० स्मृति भ्रान्ति-संदेहालङ्काराः स्यात्स्मृतिभ्रान्तिसंदेहैस्तदङ्कालङ्कृतित्रयम् । पङ्कजं पश्यतः कान्तामुखं मे गाहते मनः ॥ २४ ॥ अयं प्रमत्तमधुपस्त्वन्मुखं वेत्ति पङ्कजम् ।
पङ्कजं वा सुधांशुर्वेत्यस्माकं तु न निर्णयः ॥ २५ ॥ ___ अब शुद्ध उल्लेख का उदाहरण देते हैं, जहाँ किसी अन्य अलंकार से संकीर्णता नहीं पाई जाती।
कोई भक्त देवी पार्वती की वंदना कर रहा है। उन खप्पर को धारण करने वाले कपाली (दरिद्री) शिव का वह (अपूर्व) सौभाग्य (पार्वती), जो करुणामय है, तथा स्तनों में पुष्ट (अकृश), मध्यभाग में पतला (कृश), नेत्रों में लंबा (कर्णान्तायतलोचन), नितंबबिंब में विशाल, तथा अधर में (बिंब के समान ) लाल है, मेरे चित्त में प्रकट होवे।
यहाँ पार्वती के लिए 'कपालिभागधेय' कहना अध्यवसाय है। इसमें अतिशयोक्ति अलंकार है। पार्वती के तत्तदंगरूप विषयों का (कृशत्वादिरूप) अनेक प्रकार से वर्णन करने के कारण यहां उल्लेख अलंकार है।
८-१० स्मृति, भ्रांति तथा सन्देह २४-२५-जहां स्मृति, भ्रांति तथा संदेह हों, वहां तत्तत् अलंकार होते हैं । (१) स्मृति जहां किसी चमत्कारी सदृश वस्तु को देखकर पूर्वपरिचित वस्तु का स्मरण हो, वहां स्मृति अलंकार होता है । (२) भ्रांति-जहां किसी चमत्कारी सदृश वस्तु में किसी वस्तु की भ्रांति (मिथ्याज्ञान)हो, जैसे शुक्ति में रजत का भान, वहां भ्रांति अलंकार होता है। (३)संदेह-जहां ( कवि अपनी प्रतिभा के द्वारा) प्रकृत विषय में अप्रकृत विषयों की उद्भावना कर, किसी निश्चित ज्ञान पर न पहुँच पाये, जैसे यह 'शुक्ति है या रजत' है, वहां संदेह अलंकार होता है। इन्हीं तीनों के क्रमशः तीन उदाहरण देते हैं :
(१) स्मृति का उदाहरण-कमल को देखते हुए, मेरा मन प्रिया के मुख की याद करने लगता है।
(२) भ्रान्ति का उदाहरण-यह मस्त भौंरा तेरे मुख को कमल समझता है।
(३) संदेह का उदाहरण-यह (कांतामुख) कमल है या चन्द्रमा, इस प्रकार हम किसी निश्चित निर्णय पर नहीं पहुंच पाते। ___ इन उदाहरणों में प्रथम उदाहरण में प्रिया के मुख के सदृश कमल को देखकर प्रिया. मुख की याद हो आना स्मृति है, अतः यहां स्मृति अलंकार है। दूसरे उदाहरण में मस्त भीरा मुख तथा कमल के सादृश्य के कारण नायिका के मुख को भ्रांति से कमल समझ रहा है, अतः यह भ्रांति अलंकार है। तीसरे उदाहरण में कांतामुख में कमल और चन्द्रमा का संदेह हो रहा है, तथा द्रष्टा की चित्तवृत्ति दोलायित हो रही है, अतः यह सन्देह अलंकार है।