Book Title: Kuvayalanand
Author(s): Bholashankar Vyas
Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan

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Page 353
________________ २५६ कुवलयानन्दः ___ अत्र तावदीर्ध्यामानकलुषितदयिताप्रसादनव्यापारविधिः प्रतीयते | दृष्टिरोगार्तस्य दृष्टिं प्रत्याक्रोशो विवक्षितार्थः । स च 'दृष्टे' इत्यस्य पदस्य प्लुतोच्चारणेन संबुद्धिरूपतामवगमय्याविष्कृतः । कविनिबद्धवक्तृगुप्तं परवश्वनाथ, कविगुप्तं स्वप्रौढिकथनार्थमिति भेदः ॥ १५५ ॥ ८९ युक्त्यलंकारः युक्तिः परातिसन्धानं क्रियया मर्मगुप्तये । त्वामालिखन्ती दृष्ट्वाऽन्यं धनुः पौष्पं करेऽलिखत् ॥ १५६ ॥ अत्र 'पुष्पचापलेखनक्रियया मन्मथो मया लिखितः' इति भ्रान्त्युत्पादनेन स्वानुरागरूपमर्मगोपनाय परवञ्चनं विवक्षितम् | यथा वा दम्पत्योर्निशि जल्पतोगुहशुकेनाकर्णितं यद्वच स्तत्प्रातगुरुसंनिधौ निगदतस्तस्यातिमात्रं वधूः । कर्णालम्बितपद्मरागशकलं विन्यस्य चन्चूपुटे व्रीडार्ता विदधाति दाडिमफलव्याजेन वाग्बन्धनम् ।। भी दूर से छोड़ दिए । मुझे पैरों पड़ा (मुझे झुका) देखकर अब तो मेरे प्रति प्रसन्न होवो, हे प्रिये, तुम्हारे बिना मेरे लिए सारी दिशाएँ शून्य (अन्धी) हो गई हैं, यह सच है।' (यहाँ प्रिया के पक्ष में 'दृष्टे' सह यंतपद है, जबकि नेत्र के पक्ष में वह संबोधन है।) यहाँ ईर्ष्यामान के द्वारा कषायित प्रिया को प्रसन्न करने की चेष्टा प्रतीत हो रही है। किंतु विवक्षित अर्थ आँख की पीडा से पीडित किसी रोगी का दृष्टि के प्रति आक्रोश है। यह अर्थ 'दृष्टे' इस पद के प्लुत उच्चारण करने पर उसे संबोधन का रूप बनाकर आविष्कृत किया गया है। कविनिबद्धवक्ता के द्वारा गुप्त वस्तु का वर्णन दूसरे को ठगने के लिए किया जाता है, जब कि कवि के द्वारा गुप्त वस्तु का वर्णन कवि की प्रौढि बताने के लिए किया जाता है। ८९. युक्ति अलंकार १५६-जहाँ अपने मर्म (रहस्य का गोपन करने के लिए किसी चेष्टा से दूसरों की वंचना की जाय, वहाँ युक्ति अलंकार होता है। जैसे (कोई दूती नायक से कह रही है) नायिका तुम्हारा चित्र बना रही थी, पर किसी को समीप आता देखकर उसने हाथ में पुष्प के धनुष का चित्र बना दिया। ___ यहाँ 'पुष्पधनुष का चित्र बनाने की क्रिया के द्वारा मैंने कामदेव का चित्र बनाया है, इस भ्रांति को उत्पन्च कर अपने प्रेम को छिपाने के लिए दूसरे की वंचना विवक्षित है। अथवा जैसे'रात के समय रतिक्रीडा करते नायक नायिका ने जो बातें की थीं, वे गृहशुक ने सुन ली थीं, प्रातः काल के समय वह तोता उन सारी बातों को घर के बड़े लोगों के सामने कहने लगा। इसे देखकर लजित नायिका (बह) ने अपने कान में लटकते माणिक के टुकड़े को उसकी चोंच में डाल दिया और इस प्रकार दाडिम के बीज के बहाने उसकी वाणी को बन्द कर दिया।

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