Book Title: Kuvayalanand
Author(s): Bholashankar Vyas
Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan

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Page 354
________________ लोकोक्त्यलधारः - अत्र शुकवाङमुद्रणया तन्मुखेन स्वकीयरहस्यवचनशुश्रूषुजनषश्चनं कृतम् । व्याजोक्तावाकारगोपनं युक्तौ तदन्यगोपनमिति भेदः। यद्वा,-व्याजोक्तावप्युक्त्या गोपनमिह तु क्रियया गोपनम् । इति भेदः। एवं च 'आयान्तमालोक्य हरि प्रतोल्याम्' इति श्लोकेऽपि युक्तिरेव ।। १५६ ॥ __ ९० लोकोक्त्यलंकारः लोकप्रवादानुकतिर्लोकोक्तिरिति भण्यते । सहम्ब कतिचिन्मासान् मीलयित्वा विलोचने ॥ १५७॥ अत्र लोचने मीलयित्वेति लोकवादानुकृतिः। यथा वा मदीये वरदराजस्तवे- . नामैव ते वरद ! वान्छितदातृभावं व्याख्यात्यतो न वहसे वरदानमुद्राम् । विश्वप्रसिद्धतरविप्रकुलप्रसूते. यज्ञोपवीतवहनं हि न खल्वपेक्ष्यम् ।। अत्रोत्तरार्ध लोकवादानुकारः ।। १५७ ।।। ९१ छेकोक्त्यलंकारः छेकोक्तिर्यत्र लोकोक्तेः स्यादर्थान्तरगर्मिता । ___ यहाँ तोते की वाणी को बंद कर उसके द्वारा अपने रहस्यवचन को सुनने वाले गुरुजनों की वंचना की गई है। ब्याजोक्ति तथा युक्ति में यह भेद है कि व्याजोकि में आकार का गोपन किया जाता है, युक्ति में आकार से भिन्न वस्तु का गोपन किया जाता है। अथवा व्याजोक्ति में उक्ति के द्वारा गोपन होता है, यहाँ क्रिया के द्वारा यह दोनों का अन्तर है। इस मत के अनुसार 'आयान्तमालोक्य हरिः प्रतोल्यां' इत्यादि व्याजोकि के प्रसंग में उद्धत पद्य में भी युक्ति अलंकार है। ९०. लोकोक्ति अलंकार १५७-जहाँ लोक प्रवाद (मुहावरा, लोकोक्ति आदि) का अनुकरण किया जाय, वहाँ लोकोक्ति अलंकार होता है, जैसे (कोई नायक विरहिणी नायिका को संदेश भेज रहा है) 'हे सुन्दरि, आंखे मीच कर कुछ महीने और गुजार लो'। यहाँ 'लोचने मीलयित्वा' यह लोकवादानुकृति है। अथवा जैसे अप्पयदीक्षित के ही वरदराजस्तव मेंहे वरद, आप का नाम ही याचक को ईप्सित वस्तु देने के भाव को व्यक्त करता है, अतः आप वरदमुद्रा को धारण नहीं करते। संसारप्रसिद्ध ब्राह्मणकुल में उत्पन्न व्यक्ति से केवल यज्ञोपवीत को धारण करने की ही आशा नहीं की जाती। यहाँ उत्तरार्ध में लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है। ९१. छेकोक्ति अलंकार १५४-जहाँ लोकोक्ति के प्रयोग में कोई दूसरा अर्थ छिपा हो, वहाँ कोक्ति अलंकार होता है। जैसे, हे मित्र साँप ही साँप के पाँव जानता है। १७ कुव०

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