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विभावनालङ्कारः
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अत्र लाक्षारसासे करूपकारणाभावेऽपि रक्तिमा कथितः । स्वाभाविकत्वेन विरोधपरिहारः ।
यथा वा
अपीतक्षी कादम्बमसंसृष्टा मलाम्बरम् |
अप्रसादितसूक्ष्माम्बु जगदासीन्मनोहरम् ॥
अत्र पानादिप्रसिद्ध हेत्वभावेऽपि श्रीमत्वादि निबद्धम् । विभाव्यमानशरत्समहेतुकत्वेन विरोधपरिहारः ।
यथा वा
वरतनुकबरी विधायिना सुरभिनखेन नरेन्द्रपाणिना । अवचितकुसुमापि वल्लरी समजनि वृन्तनिलीनषट्पदा ||
अत्र वल्लर्यां पुष्पाभावेऽपि भृङ्गालिङ्गनं निबद्धम् । अत्र वरतनुकबरीसंक्रान्तसौरभनर पति नखसंसर्गरूपं हेत्वन्तरं विशेषणमुखेन दर्शितमिति विरीधपरिहारः ॥
यहाँ लाक्षारससेकरूप कारण के बिना भी चरणों की लाली का वर्णन किया गया है । (विभावना में सदा बीजरूप में विरोध रहता है तथा उसका परिहार करने पर ही विभावना अलंकार घटित होता है । हम देखते हैं कि लोक में कारण के अभाव में कार्योत्पत्ति कभी नहीं होती, अतः ऐसा होना आपाततः विरोध दिखाई देना है । इसीलिये इसका परिहार करना आवश्यक हो जाता है। चूँकि विभावनां विरोधमूलक कार्यकारणमूलक अलंकार है, इसीलिए दीक्षित ने इसे विरोधाभास के बाद ही वर्णित किया है ।) यहाँ चरणों की लाली नैसर्गिक है, अतः कारणाभाव में कार्योत्पत्ति के विरोध का परिहार हो जाता है।
अथवा जैसे - ( शरत् ऋतु का वर्णन है। )
बिना शराब पिए मस्त बने हंसों वाला, बिना साफ किए निर्मल बने आकाश वाला, तथा बिना साफ किए स्वच्छ बने जल वाला ( शरत्कालीन ) जगत् अत्यधिक सुन्दर हो रहा था ।
यहाँ मद्यपानादि कारणविशेष के बिना भी हंसादि की मस्ती किया गया है, अतः विभावना है । कारणाभाव में तरह किया जा सकता है कि हंसों की मस्ती, स्वच्छता का कारण शरत् ऋतु का आगमन है । अथवा जैसे
कार्योत्पत्ति के आकाश की
इत्यादि कार्य का वर्णन विरोध का परिहार इस निर्मलता और जल की
'सुन्दरी के केशपाश की रचना करने से सुगंधित नाखूनवाले राजा के हाथ के द्वारा चुने गये फूल वाली लता फिर से टहनी पर भौंरों से आवेष्टित हो गई ।'
यहाँ वल्लरी के फूल तोड़ लेने पर उसमें भौंरों का मँडराना - पुष्पाभाव में भी भौरों का होना, कारणाभाव में कार्योत्पत्ति का निबन्धन है । यहाँ विरोध का परिहार इस तरह हो जाता है कि कवि ने स्वयं ही 'नरपतिपाणिना' पद के विशेषण के द्वारा इस कार्य के दूसरे कारण का उल्लेख कर दिया है, वह यह कि राजा के हाथ के नाखून सुन्दरी के केशपाश की रचना करने से सुगंधित हो गये थे, अर्थात् कवि ने स्वयं ही राजा के नाखूनों में सुन्दरी के केशपाश की सुगंध का संक्रान्त होकर उन्हें सुगन्धित बना देना रूप अन्य हेतु का निबन्धन कर दिया है ।