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कुवलयानन्दः
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८४ सूक्ष्मालङ्कारः सूक्ष्म पराशयाभिशेतरसाकृतचेष्टितम् । मयि पश्यति सा केशै सीमन्तमणिमाघृणोत् ॥ १५१ ॥ कामुक्रस्यावलोकनेन सडंकेतकालप्रश्नभावं ज्ञातवत्याश्चेष्टेयम् । अस्तं गते सूर्ये संकेतकाल इत्याकूतम् । यथा वा
संकेतकालमनसं विटं ज्ञात्वा विदग्धया । भासीनेत्रार्पिताकृतं लीलापमं निमीलितम् ॥ १५१
८५ पिहितालङ्कारः पिहितं परवृत्तान्तज्ञातुः साकूतचेष्टितम् । प्रिये गृहागते प्रातः कान्ता तल्पमकल्पयत् ॥ १५२ ॥ रात्रौ सपत्नीगृहे कृतजागरणेन श्रान्तोऽसीति तल्पकल्पनाकूतम् । यथा वावक्त्रस्यन्दिस्वेदबिन्दुप्रबन्धेदृष्ट्या भिन्नं कुङ्कम कापि कण्ठे ।
८४. सूक्ष्म अलंकार १५१-जहाँ किसी अन्य व्यक्ति के आशय को जानने वाला उसके प्रति साभिप्राय चेष्टा करे, वहाँ सूचम अलंकार होता। जैसे (कोई नायक अपने मित्र से कह रहा है) मुझे देखकर उस नायिका ने अपने बालों से सीमन्तमणि को ढंक दिया।
यहाँ सीमन्तमणि को बालों से ढंक देना यह उस नायिका की साभिप्राय चेष्टा है, जो अपने उपपति को देखकर उसके संकेत कालविषयक प्रश्न का आशय समझ बैठी है। संकेत काल के प्रश्न का उत्तर देने के लिए वह अन्धकार के समान काले बालों से दीप्त सीमन्तमणि को ढंक देती है। भाव यह है 'सूर्य के अस्त होने पर संकेतकाल है'।
इसी का दूसरा उदाहरण यह है:किसी चतुर नायिका ने उपनायक को संकेतकाल को जानने की इच्छा वाला जान कर, अपने नेत्रों को मटका कर अपना आशय व्यक्त करते हुए लीला कमल को बंद कर दिया।
यहाँ नायिका का 'लीलाकमल' को निमीलित कर देना साभिप्राय चेष्टा है, भाव यह . है 'सूर्यास्त के समय आना (जब कमल बन्द हो जाते हैं)।'
८५. पिहित अलङ्कार १५२-जहाँ दूसरे के गुप्त वृत्तान्त को जानकर कोई व्यक्ति साभिप्राय चेष्टा करे, वहाँ पिहित अलजार होता है। जैसे, नायक के प्रातःकाल घर पर लौटने पर (ज्येष्ठा) नायिका ने शय्या सजा दी।
यहाँ नायिका के शय्या सजाने का यह गूढाभिप्राय है कि तुम रात भर मेरी सौत के यहाँ रहे हो, वहाँ रात भर जगते रहे हो, इसलिए थके हो।
अथवा'किसी सती ने नायिका के कण्ठ में उसके मुखमण्डल से टपके स्वेदबिन्दुओं की धारा से