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कुवलयानन्दः
उपपतिना खण्डिताधराया नायिकायाः सकाशमागच्छन्तं प्रियमपश्यन्त्येव सख्या नायिकां प्रति हितोपदेशव्याजेन तं प्रति नायिकापराधगोपनम् । छेकापह्नतेरस्याश्चायं विशेष:-तस्यां वचनस्यान्यथानयनेनापह्नवः; अस्यामाकारस्य हेत्वन्तरवर्णनेन गोपनमिति | लक्षणे लक्ष्यनानि चोक्तिग्रहणमाकारस्य गोपनार्थ हेत्वन्तरप्रत्यायकव्यापारमात्रापलक्षणम् । ततश्च
आयान्तमालोक्य हरिं प्रतोल्यामाल्याः पुरस्तादनुरागमेका ।
रोमाञ्चकम्पादिभिरुच्यमानं भामा जुगूह प्रणमन्त्यथैनम् ।। ___ इत्यत्रापि व्याजोक्तिरेव । अत्र ह्यनुरागकृतस्य रोमाञ्चाद्याकारस्य भक्तिरूपहेत्वन्तरप्रत्यायकेन प्रणामेन गोपनं कृतम् ! सूक्ष्मपिहितालङ्कारयोरपि चेष्टित. ग्रहणमुक्तिसाधारणव्यापारमात्रोपलक्षणम् । ततश्चको सक्षत देखकर किसे रोष न होगा। मैंने तुझे पहले ही मना किया था भौरे वाले कमल को न सूघना। टिप्पणी-यह प्रसिद्ध गाथा का संस्कृत रूपान्तर है :
कस्स ण वा होइ रोसो दठूण पिआए सब्बणं अहरं ।
सब्भमरपउमग्याइणि वारिअवामे सहसु एहि ॥ किसी सखी ने उपपति के द्वारा खण्डिताधर नायिका के पास आते पति को देख तो लिया है, पर वह ऐसा बहाना बनाती है कि जैसे उसे उसके आने की सूचना है ही नहीं, वह अपनी सखी (नायिका) को उपदेश देती हुई उसके व्याज से नायिका के पररमणरूप अपराध का गापन कर रही है। व्याजोक्ति तथा अपह्नति के प्रकरण में वर्णित छेकापहुति में यह भेद है कि वहाँ वचन को दूसरे ढङ्ग से स्पष्ट करके वास्तविकता की निहुति की जाती है, जब कि यहाँ (व्याजोक्ति में ) आकार का अन्य हेतु की उक्ति के द्वारा गोपन किया जाता है। व्याजोक्ति के लक्षण तथा नामो द्देश्य में जो 'उक्ति' शब्द का प्रयोग किया गया है, वह आकार के गोपन के लिए प्रयुक्त अन्य हेतु के प्रत्यायक व्यापार मात्र का द्योतक है-इस प्रकार हेत्वन्तर प्रत्यायक चेष्टादि भी व्याजोक्ति में समाविष्ट हो जायगी। इसलिए निम्न पद्य में भी ब्याजोक्ति अलङ्कार ही है:
कोई नायिका कृष्ण को गली (या राजमार्ग) से गुजरते देखती है। उसने कृष्ण को सामने गली से आते देखकर रोमाञ्च, कम्प आदि सात्त्विकभावों के द्वारा प्रतीत रति भाव को उन्हें प्रणाम करके छिपा लिया है। ___ यहाँ नायिका के रोमाञ्चादि आकार रति भाव (अनुराग) के कारण हैं, किन्तु वह भक्तिरूप अन्यहेतु की चेष्टा-प्रणाम के द्वारा उसका गोपन कर लेती है। अतः यहाँ भी व्याजोक्ति ही है । ध्यान देने की बात है कि यहाँ हेत्वन्तर के लिए किसी उक्ति का प्रयोग नहीं किया गया है, केवल प्रणामक्रिया रूप व्यापार का प्रयोग हुआ है, पर उक्ति का व्यापक अर्थ लेने पर इसका भी समावेश हो गया है।।
इसी तरह सूक्ष्म तथा पिहित अलङ्कारों में भी जहाँ लक्षण में 'चेष्टित' शब्द का प्रयोग हुआ है, वहाँ उक्ति साधारण व्यापारमात्र का अर्थ लेना होगा। इसलिए जहाँ उक्ति का प्रयोग हो, तथा उसके द्वारा पराशय को जान कर साकृत उक्ति का प्रयोग किया जाय वहाँ भी सूचमालङ्कार का क्षेत्र होगा, जैसे निम्न पद्य में