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व्याजोक्त्यलङ्कारः
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पुंस्त्वं तन्व्या व्यञ्जयन्ती वयस्या स्मित्वा पाणौ खङ्गलेखां लिलेख || अत्र स्वेदानुमितं पुरुषायितं पुरुषोचितखड्गलेखालेखनेन प्रकाशितम् ॥१५२॥ ८६ व्याजोक्त्यलङ्कारः व्याजोक्तिरन्यहेतुक्त्या यदाकारस्य गोपनम् । सखि ! पश्य गृहारामपरागैरस्मि धूसरा ॥ १५३ ॥ अत्र चौर्यरतकृतसङ्केत भूपृष्ठ लुण्ठन लग्नधूलिजालस्य गोपनम् ।
यथा वा
कस्य वा न भवेद्रोषः प्रियायाः सव्रणेऽधरे । सभृङ्गं पद्ममाघ्रासीर्वारितापि मयाधुना ||
हे कुङ्कुम को देखकर, मुसकुरा कर उसकी हथेली पर ( पत्रावली के स्थान पर ) खड्गलेखा का चित्र बना दिया ।"
यहाँ सखी ने खड्गलेखा लिखकर नायिका के गुप्त पुरुषायित (विपरीत रति ) को प्रकाशित किया है, जिसका अनुमान सखी को नायिका के मुखमण्डल से गले की ओर आते स्वेदविन्दुओं से हो गया है ।
टिप्पणी - मम्मट ने इस उदाहरण में सूक्ष्म अलंकार माना है ( दे० काव्यप्रकाश १०-१२२ ), जब कि दीक्षित इसमें पिहित अलंकार मानते हैं। दीक्षित ने सूक्ष्म तथा पिहित दो भिन्न अलंकार माने हैं, जब कि चन्द्रालोककार जयदेव ने सूक्ष्म अलंकार नहीं माना है, वे पिहित ही मानते हैं । वस्तुतः मम्मट के सूक्ष्म में अप्पयदीक्षित के सूक्ष्म तथा पिहित दोनों का अन्तर्भाव हो जाता है । इस सम्बन्ध में यह कह दिया जाय कि रुद्रट ने काव्यालंकार में 'पिहित' नामक एक अलंकार माना है, पर वह अध्पयदीक्षित के पिहित से सर्वथा भिन्न है । रुद्रट का पिहित अलंकार वहाँ होता है, जहाँ अतिप्रबल होने के कारण कोई गुण समानाधिकरण, असदृश अन्य वस्तु को ढँक ले । यत्रातिप्रबलतया गुणः समानाधिकरणमसमानम् ।
अर्थान्तरं पिदध्यादाविर्भूतमपि तत् पिहितम् ॥ ( काव्यालंकार ९-५० )
रुद्रट का पिहित वस्तुतः अन्य आलंकारिकों के मीलित से मिलता जुलता अलंकार है ।
८६. व्याजोकि
१५३ - जहाँ किसी दूसरे हेतु को बताकर उसके द्वारा आकार का गोपन किया जाय, वहाँ व्याजोक्ति अलङ्कार होता है, जैसे कोई कुलटा चौर्यरत के समय भूपृष्ठ पर लुंठन करने से धूलिधूसरित हो गई है, वह अपने आकार का गोपन करने के लिए अन्य हेतु बताती सखी से कह रही है, 'हे सखि, देख, घर के बगीचे के पराग से मैं धूसरित हो गई हूँ ।"
यहाँ चौर्यरत के समय संकेत स्थल की जमीन पर लोट कर रतिक्रीडा करने के कारण वह धूलिधूसरित हो गई है, किन्तु इस आकार को छिपा रही है ।
अथवा जैसे-
उपनायक के द्वारा खण्डिताधर नायिका के चौर्यरत को पति से बचाने के लिए उसे भौंरे का दोष बताती कहती है: -- 'हे सखी, बता तो सही, प्रिया के अधरोष्ठ
कोई