Book Title: Kuvayalanand
Author(s): Bholashankar Vyas
Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan

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Page 350
________________ विवृतोक्त्यलङ्कारः ~~~ २५३ यथा वा नाथो मे विपणिं गतो, न गणयत्येषा सपत्नी च मां, त्यक्त्वा मामिह पुष्पिणीति गुरवः प्राप्ता गृहाभ्यन्तरम् । शय्यामात्र सहायिनीं परिजनः श्रान्तो न मां सेवते, स्वामिन्नागमलालनीय ! रजनीं लक्ष्मीपते ! रक्ष माम् ॥ अत्र 'लक्ष्मीपति' नाम्नो जारस्यागमनं प्रार्थयमानायास्तटस्थवचनाय भगवन्तं प्रत्याक्रोशस्य प्रत्यायनम् ॥ १५४ ॥ ८८ विवृतोक्त्यलङ्कारः विवृतोक्तिः श्लिष्टगुप्तं कविनाविष्कृतं यदि । वृषापेहि परक्षेत्रादिति वक्ति सम्रचनम् ॥। १५५ ।। श्लिष्टगुप्तं वस्तु यथाकथंचित्कविनाविष्कृतं चेद्विवृतोक्ति: । 'वृषापेहि' इत्युदाहरणे पूर्ववद्गुप्तं वस्तु ससूचनमिति कविनाविष्कृतम् । यथा वा वत्से ! मा गा विषादं श्वसनमुरुजवं संत्यजोर्ध्व प्रवृत्तं की, यहाँ यह बात नहीं है। साथ ही यहाँ श्लेष ( अर्थश्लेष ) अलङ्कार भी नहीं है । क्योंकि श्लेष में दोनों पक्ष प्रकृत होते हैं, जब कि यहाँ अप्रकृत (बैल) के द्वारा प्रकृत ( कामुक ) के व्यवहार की विवक्षा पाई जाती है । इसलिए यह उक्ति तो केवल दूसरे को ठगने के लिए प्रयुक्त की गई है, अतः यहाँ किसी विशेष प्रकार की चमत्कृति पाई जाती है । इसी का दूसरा उदाहरण यह है: कोई कुलटा अपने उपपति को बुलाती गूढोक्ति का प्रयोग कर रही है, ताकि तटस्थ व्यक्ति न समझ सकें । 'मेरा स्वामी बाजार गया है, यह सौत मेरी पर्वाह हो नहीं करती मुझे रजस्वला समझ कर छोड़ कर बड़े लोग घर के भीतर चले गये हैं । मैं अकेली शय्या पर पड़ी हूँ । नौकर थकने के कारण मेरी सेवा नहीं कर रहे हैं । हे स्वामिन् लक्ष्मीपति ( विष्णु भगवान्, लक्ष्मीपति नामक जार ) अपने आगमन के द्वारा रात भर मेरी रक्षा करो।" यहाँ 'लक्ष्मीपति' नामक उपपति के आगमन की प्रार्थना करती कुलटा ने दूसरों को ठगने के लिए भगवान् विष्णु से प्रार्थना की है । अतः यहाँ गूढोक्ति अलङ्कार है । ८८. विवृतोक्ति अलङ्कार १५५ - जहाँ कवि किसी श्लिष्टगुप्त वस्तु को प्रकट कर दे, वहाँ विवृतोक्ति अलङ्कार होता है, जैसे 'हे बैल, दूसरे के खेत से हट जा' इस प्रकार कोई ससूचना कह रहा है। जहाँ कवि किसी प्रकार श्लिष्टगुप्त वस्तु को प्रकट करे, वहाँ विवृतोक्ति अलङ्कार होता 'है । 'वृषापेहि' इस कारिकार्ध के उदाहरण में, गूढोक्ति की तरह ही वस्तु गुप्त है, किंतु यहां कवि ने ससूचनं' पद का प्रयोग कर उसे प्रगट कर दिया है, अतः यहाँ विवृतोकि अलङ्कार है । जैसे— 'हे बच्ची, विषाद मत कर ( विष को खाने वाले शिव के पास न जा ), अत्यधिक वेग

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