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कुवलयानन्दः
यत्रासौ वेतसी पान्थ ! तत्रेयं सुतरा सरित् ॥ १४६ ॥ सरित्तरणमार्ग पृच्छन्तं प्रति तं कामयमानाया उत्तरमिदम् । वेतसीकुले स्वाच्छन्द्यमित्याकूतगभेम् । यथा वा
ग्रामेऽस्मिन् प्रस्तरप्राये न किंचित्पान्थ ! विद्यते ।
पयोधरोन्नतिं दृष्ट्वा वस्तुमिच्छसि चेद्वस । आस्तरणादिकमर्थयमानं पान्थं प्रत्युक्तिरियम् । स्तनोन्नतिं दृष्ट्वा रन्तुमिच्छसि चेद्वस । अविदग्धजनप्रायेऽस्मिन् ग्रामे कश्चिदवगमिष्यतीत्येतादृशं प्रतिबन्धकं किंचिदपि नास्तीति हृदयम् । इदमुन्नेयप्रश्नोत्तरस्योदाहरणम् । निबद्धप्रश्नोत्तरं यथा
कुशलं तस्या ? जीवति, कुशलं पृच्छामि, जीवतीत्युक्तम् ।
पुनरपि तदेव कथयसि, मृतां तु कथयामि या श्वसिति ।। होता । जैसे, किसी राहगीर के नदी को पार करने का स्थल पूछने पर कोई स्वयं दूती कहती है) हे राहगीर, जहाँ यह वेतस-कुंज दिखाई पड़ रहा है, वहीं नदी को पार करने का स्थल है।
यह उक्ति किसी कामुकी स्वयंदूती की है, जो सरित्तरणमार्ग को पूछते हुए किसी राहगीर के प्रति कही गई है। यहाँ 'वेतसीकुञ्ज' में स्वच्छन्दता सेकामकेलि हो सकती है, यह स्वयंदूती का गूढाभिप्राय है । अथवा जैसे निम्न उक्ति में
कोई स्वयं दूती गाँव में ठहरने की जगह तथा बिस्तर आदि के लिए पूछने वाले किसी राहगीर को उत्तर दे रही है :-हे राहगीर, इस पथरीले गांव में कुछ भी नहीं मिलेगा। आकाश में बादल घिर रहे हैं, अतः बादलों को घिरे देखकर (तथा मेरे पयोधरों को उन्नत देखकर) यदि तुम्हारी ठहरने की इच्छा हो तो ठहर जावो । टिप्पणी-यह प्रसिद्ध प्राकृत गाथा का संस्कृत रूपान्तर है :
पंथि ण एत्थ सस्थरमस्थि मणं पत्थरत्थले गामे ।
ऊण पोहरं पेक्खिऊण जइ क्ससु ता वससु॥ बिस्तर आदि की प्रार्थना करते किसी पान्थ के प्रति यह स्वयं दूती का उत्तर है। यदि स्तनोन्नति को देखकर रमण करना चाहो, तोरहो। यह गाँव तो पथरीला है-पत्थरों की बस्ती है, अतः मूर्ख लोगों के इस गाँव में, कोई हमारे रमण को जान जायगा, इस प्रकार की आशंका करने की कोई आवश्यकता नहीं है, यह उक्ति का रहस्य (हृदय) गूढाभिप्राय ह। यह कल्पित प्रश्न के उत्तर का उदाहरण है (भाव यह ह, इन दोनों उक्तियों में केवल उत्तर ही पाया जाता है, प्रश्न नहीं, अतः प्रश्न प्रसंगवश कल्पित कर लिया जाता है।)
किन्हीं किन्हीं स्थलों पर प्रश्न तथा उत्तर दोनों निबद्ध किये जाते हैं । निबद्ध प्रश्नोत्तर का उदाहरण निम्न है। ___ कोई सखी नायक के पास जाती है, वह उससे नायिका की अवस्था के विषय में पूछता है-वह कुशल तो है', वह उत्तर देती है-'जिन्दी है', 'मैं कुशल पूछ रहा हूँ।' 'तभी तो जी रही है, यह कहा है। फिर वही उत्तर दे रही हो।' 'तो मैं उसे मरी कैसे कह सकती हूँ, वह तो अभी साँस ले रही है।'