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कुवलयानन्दः
मीलितन्यायेन भेदानध्यवसाये प्राप्ते कुतोऽपि हेतोर्भेदस्फूर्ती मीलितप्रतिद्वन्द्व युन्मीलितम् । तथा सामान्यरीत्या विशेषास्फुरणे प्राप्ते कुतश्चित्कारणाद्विशेषस्फूर्ती तत्प्रतिद्वन्द्वी विशेषकः । क्रमेणोदाहरणद्वयम् । तद्गुणरीत्यापि भेदानध्यबसायप्राप्तान्मीलितं दृश्यते ।
यथा
नृत्यद्भर्गाट्टहासप्रसरसहचरं स्तावकीनैर्यशोभि
धवल्यं नीयमाने त्रिजगति परितः श्रीनृसिंह क्षितीन्द्र ! | deredष नाभीकमलपरिमलप्रौढिमासादयिष्य
हेवानां नाभविष्यत् कथमपि कमलाकामुकस्यावबोधः ॥
ये अनुमान से भिन्न हैं, इसका स्पष्ट हेतु विद्यमान है। साथ ही यदि तुम अनुमान अलङ्कार का कोई कपोलकल्पित लक्षण मानकर इन्हें अनुमान अलङ्कार में अन्तर्भूत करते हो, तो भी हम देखते हैं कि दो वस्तुओं के सादृश्यवैशिष्टय के कारण जहाँ पहले उनमें भेदप्रतीति या वैशिष्टयप्रतीति न हो सके, किंतु फिर किसी विशेष कारण से भेदप्रतीति तथा वैशिष्टयप्रतीति हो, वहाँ मीलित तथा सामान्य के प्रतिद्वन्द्वी होने के कारण अन्य अलङ्कार मानना ठीक ही है। जिस तरह हमने तद्गुण तथा उल्लास के प्रतिद्वन्द्वी होने के कारण अतद्गुण तथा अवज्ञा को अलग से अलंकार माना है, वैसे ही भेदतिरोधान के न होने पर मीलित का प्रतिद्वन्द्वी उन्मीलित, तथा वैशिष्टयाप्रतीति न होने पर सामान्य का प्रतिद्वन्द्वी विशेष अलंकार माना ही जाना चाहिए ।
यवनुमानालङ्कारेणैव गतार्थत्वान्नानयोरलङ्कारान्तरत्वमिति तदयुतम, उदाहृतस्थले भेदविशेषस्फुटयर्विशेषदर्शन हेतुक प्रत्यक्ष रूपत्वात् । अथापि स्वकपोलकल्पित परिभाषया नुमानालङ्कारतां बूषे तथापि सादृश्यमहिम्ना प्रागन वगतयोर्भेदवैजात्ययोः स्फुरणात्मना विशेषाकारेण मीलित सामान्यप्रतिद्वंद्विना युक्तमेवालङ्कारान्तरत्वम् । अतद्गुणावज्ञयोरिव विशेषोक्त्यलङ्कारादित्यलं विस्तरेण । ( चन्द्रिका पृ० १६६ )
for अलङ्कार के ढंग से दो वस्तुओं के सादृश्य के कारण भेदतिरोधान होने पर भी किसी कारण विशेष से भेदप्रतीति हो जाय, वहाँ मीलित का प्रतिद्वन्द्वी उन्मीलित अलङ्कार होता है । इसी तरह सामान्य अलङ्कार के ढंग पर वैशिष्टयज्ञान के तिरोहित होने पर भी किसी कारण से वैशिष्ट्य की प्रतीति हो जाय, वहाँ विशेष अलङ्कार होता है । कारिका का द्वितीयार्ध तथा तृतीयार्धं इन्हीं दोनों के क्रमशः उदाहरण हैं । जहाँ किसी एक वस्तु के गुण से दूसरी वस्तु का अपना गुण दबा दिया जाय तथा दोनों गुणों की भेदाप्रतीति होनें पर किसी कारण से भेदज्ञान हो वहाँ भी उन्मीलित होता है ।
उन्मीलित का एक उदाहरण यह है:
हे राजन् नृसिंहदेव, नृत्य करते हुए शिवजी के अट्टहास समान श्वेत आपके यश से समस्त त्रैलोक्य धवल हो गया है, ऐसी स्थिति में यदि लक्ष्मी के पति विष्णु अपने नाभिकमल की सुगन्धसमृद्धि को न प्राप्त करते, तो संभवतः अन्य देवताओं में उनकी प्रतीति किसी तरह भी न हो पाती ।
( यहाँ विष्णु ने अपने नीलगुण को छोड़ कर अपने आपको नृसिंहदेव के यश की वलिमा में घुला मिला लिया है। इस प्रकार यश तथा विष्णु की भेप्रतीति के
लुप्त