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कुवलयानन्दः
३८ विषमालङ्कारः विषमं वर्ण्यते यत्र घटनाऽननुरूपयोः ।
केयं शिरीषमृदङ्गी, क तावन्मदनज्वरः ॥ ८८ ॥ अत्रातिमृदुत्वेनातिदुःसहत्वेन चाननुरूपयोरङ्गनामदनज्वरयोर्घटना। यथा वाअभिलषसि यदीन्दो ! वक्रलक्ष्मी मृगाक्ष्याः
पुनरपि सकृदब्धौ मज सङ्खालयाङ्कम् । सुविमलमथ बिम्बं पारिजातप्रसूनैः
सुरभय, वद नो चेत्त्वं क तस्या मुखं क ॥ पूर्वत्र वस्तुसती घटना । अत्र चन्द्र-वदनलक्ष्म्योस्तर्किता घटनेति भेदः ॥८॥
विरूपकार्यस्योत्पत्तिरपरं विषमं मतम् ।
कीर्तिं प्रसूते धवलां श्यामा तव कृपाणिका ॥ ८९ ॥ अत्र कारणगुणप्रक्रमेण विरुद्धाच्छचामाद्धवलोत्पत्तिः । कार्यकारणयोनिवर्त्यः निवर्तकत्वे पञ्चमी विभावना । विलक्षणगुणशालित्वे त्वयंविषम इति भेदः ॥६॥
३८. विषम अलंकार ८८-जहाँ दो अननुरूप पदार्थों का वर्णन किया जाय, वहाँ विषम अलंकार होता है, जैसे, कहाँ तो शिरीष के समान कोमल अंगवाली यह सुन्दरी और कहाँ अत्यधिक तापदायक (दुःसह) कामज्वर ? . यहाँ अतिमृदुत्व तथा अतिदुःसहत्व रूप धर्मों के द्वारा दो अननुरूप (परस्पर असदृश) पदार्थों-सुन्दरी तथा मदनज्वर का वर्णन किया गया है।
अथवा जैसे
हं चन्द्रमा, यदि तुम हिरन के समान आँख वाली उस नायिका के मुख की कांति को प्राप्त करना चाहते हो, तो फिर से एक बार समुद्र में डूब कर अपने कलंक को धो डालो, इसके बाद अपने निर्मल विंब को पारिजात के फूलों से सुगन्धित करो। नहीं तो, बताओ, कहाँ तुम और कहाँ उस सुन्दरी का मुख ? ____ यहाँ पहले उदाहरण से इस उदाहरण में यह भेद है कि वहाँ सुन्दरी तथा मदनज्वर की परस्पर अननुरूपता वास्तविक है, जब कि यहाँ चन्द्रमा तथा नायिका-वदनकांति की अननुरूपता कवितर्कित है।
८९-(विषम का दूसरा भेद) जहाँ किसी कारण से अपने से भिन्न गुण वाले कार्य की उत्पत्ति हो, वहाँ दूसरा विषम होता है. जैसे हे राजन्, तेरी काली कटार श्वेत कीर्ति को जन्म देती है। ___ यहाँ कारण के गुण की परिपाटी (कारणगुणाः कार्यगुणानारभन्ते-इस न्याय ) से विरोधी बात पाई जाती है कि काली वस्तु से धवल की उत्पत्ति हो रही है। (इस संबंध में यह शंका हो सकती है कि विषम के इस प्रकारविशेष का विभावना के पंचम प्रकार