Book Title: Kuvayalanand
Author(s): Bholashankar Vyas
Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan

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Page 320
________________ उल्लासालङ्कारः २२३ काठिन्यं कुचयोः स्रष्टुं वाञ्छन्त्यः पादपद्मयोः । निन्दन्ति च विधातारं त्वद्धाटीष्वरियोषितः ॥ १३४ ॥ तदभाग्यं धनस्यैव यन्नाश्रयति सज्जनम् । लाभोऽयमेव भूपालसेवकानां न चेद्वधः ॥ १३५ ॥ यत्र कस्यचिद्गुणेनान्यस्य गुणो दोषेण दोषो गुणेन दोषो दोषेन गुणो वा वर्ण्यते स उल्लासः। द्वितीयार्धमाद्यस्योदाहरणम् । तत्र पतिव्रतामहिमगुणेन तदीयस्नानतो गङ्गायाः पावनत्वगुणो वर्णितः। द्वितीयश्लोके द्वितीयस्योदा. हरणम् । तत्र राज्ञो धाटीषु वने पलायमानानामरातियोषितां पादयोर्धावनपरि. पन्थिमार्दवदोषेण तयोः काठिन्यमसृष्ट्वा व्यर्थ कुचयोस्तत्सृष्टवतो धातुर्निन्द्यत्वदोषो वर्णितः । तृतीयश्लोकस्तृतीय चतुर्थयोरुदाहरणम् । तत्र सज्जनमहिमगुणेन धनस्य तदनाश्रयणं दोषत्वेन, राज्ञः क्रौयदोषेण तत्सेवकानां वधं विना विनिर्गमनं गुणत्वेन वर्णितम् । २-कोई कवि राजा की वीरता की प्रशंसा करते हुए शत्रुनारियों की दशा का वर्णन करता है। हे राजन् , तुम्हारे युद्धयात्रा के लिए प्रस्थित होने पर तुम्हारी शत्रुरमणियाँ अपने कुचों की कठिनता को चरणकमलों में चाहती हैं (ताकि कठिन पैरों में उन्हें वन की दुर्गम कठोर भूमि असह्य न लगे) तथा इस प्रकार की रचना न करने वाले (पैरों को कमल के समान कोमल बनाने वाले) ब्रह्मा की निन्दा करती हैं। (दोष से दोष का उदाहरण) ३-यह धन का ही दुर्भाग्य है कि वह सजनों के पास नहीं रहता। (गुण से दोष का वर्णन) ४-यदि राजसेवकों का वध नहीं होता, तो यह उनका लाभ ही है। (दोष से गुण का उदाहरण) __जहाँ किसी एक वस्तु के गुण से दूसरी वस्तु का गुण, उसके दोष से दूसरी वस्तु का दोष, उसके गुण से दूसरी वस्तु का दोष अथवा उसके दोष से दूसरी वस्तु का गुण वर्णित किया जाय, वहाँ उल्लास नामक अलङ्कार होता है। कारिकाभाग की प्रथम कारिका का द्वितीया प्रथम (गुण से गुण) का उदाहरण है । यहाँ पतिव्रता की महिमा रूपी गुण के वर्णन के द्वारा उसके स्नान से गंगा की पवित्रता के गुण का वर्णन किया गया है। द्वितीय श्लोक में द्वितीय (दोष से दोष) का उदाहरण है। यहाँ राजा की युद्धयात्राओं के समय वन में भगती हुई शत्रुस्त्रियों के दौड़ने में बाधक पैरों की कोमलता का दोष वर्णित कर उसके द्वारा उनकी कठिनता की रचना न कर व्यर्थ ही स्तनों की कठिनता की रचनं करने वाले ब्रह्मा का दोष वर्णित किया गया है। तृतीय कारिका में तीसरे व चौथे दोनों के उदाहरण हैं । वहाँ प्रथमार्ध में सजनों की महिमा के गुण के द्वारा धन का उनके पास न होना रूपी दोष, तथा राजा की क्रूरता के दोष के द्वारा राजसेवकों का विना बध के बच निकलना गुण के रूप में वर्णित हुआ है।

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