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लेशालङ्कारः
२३१ इह व्याजस्तुतिसद्भावेऽपि न दोषः । न ह्येतावता लेशमात्रस्य व्याजस्तुत्यन्त. र्भावः प्रसज्जते; तदसंकीर्णयोरपि लेशोदाहरणयोर्दर्शितत्वात् । नापि व्याजस्तु: तिमात्रस्य लेशान्तर्भावः प्रसज्जते; भिन्नविषयव्याजस्तुत्युदाहरणेषु 'कस्त्वं वानर ! रामराजभवने लेखार्थसंवाहकः', 'यद्वक्त्रं मुहुरीक्षसे न धनिनां ब्रूषे न चाटून्मृषा' इत्यादिषु दोषगुणीकरणस्य गुणदोषीकरणस्य चाभावात् । तत्रान्य. गुणदोषाभ्यामन्यत्र गुणदोषयोःप्रतीतेः ।। विषयैक्येऽपि
'इन्दोर्लक्ष्म त्रिपुरजयिनः कण्ठमूलं मुरारि
दिङ्नागानां मदजलमषीभाञ्जि गण्डस्थलानि । अद्याप्युर्वीवलयतिलक ! श्यामलिम्नानुलिप्ता- .
न्याभासन्ते वद धवलितं किं यशोभिस्त्वदीयैः ॥' इत्याद्युदाहरणेषु लेशास्पर्शनात् । अत्र हीन्दुलक्ष्मादीनां धवलीकरणाभावदोष एव गुणत्वेन न पर्यवसति, किन्तु परिसंख्यारूपेण ततोऽन्यत्सर्व धवलितमित्यतो गुणः प्रतीयते । कचियाजस्तुत्युदाहरणे गुणदोषीकरणसत्त्वेऽपि स्तुतेविषयान्तरमपि दृश्यते ।
में व्याजस्तुति अलंकार की शंका नहीं करनी चाहिए। इसका कारण यह है कि यहाँ राजा के कोप तथा सखियों की हँसी से छुटकारा तभी हो सकता है, जब कि निन्दा स्तुति का पता दूसरों को न चल पाय, अतः यहाँ लेश के द्वारा ही स्वमन्तव्य प्रकटित किया गया है वसे यहाँ व्याजस्तुति अलकार भी मान लिया जाय, तो कोई हर्ज नहीं । किन्तु इससे लेश अलङ्कार का व्याजस्तुति में समावेश नहीं हो जाता, क्योंकि लेश के कई ऐसे भी उदाहरण दिये जा सकते हैं, जहां व्याजस्तुति का सङ्कर नहीं पाया जाता। न व्याजस्तुति को ही लेश में समाविष्ट किया जा सकता है। क्योंकि ऐसे उदाहरणों में जहां भिन्न विषय व्याजस्तुति पाई जाती है (जहां किसी एक की निन्दा से किसी दूसरे की स्तुति या किसी एक की स्तुति से किसी दूसरे की निन्दा प्रतीत होती है)/ वहां गुण का दोषीकरण तथा दोष का गुणीकरण नहीं पाया जाता, जैसे 'कस्त्वं वानर रामराजभवने लेखार्थसंवाहक' तथा 'यद्वक्त्रं मुहुरीक्षसे न धनिनां ब्रूषे न चान्मृषा' इन पूर्वोदाहृत पद्यों में, क्योंकि वहाँ तो किसी एक के गुणदोष से किसी दूसरे के गुणदोष की प्रतीति होती है। ___ कई स्थानों पर विषयैक्य होने पर भी व्याजस्तुति में लेश का स्पर्श नहीं होता, जैसे निम्न उदाहरण में
कोई कवि निन्दा के व्याज से किसी राजा की स्तुति कर रहा है । हे राजन् , चन्द्रमा का कलङ्क, त्रिपुरविजयी शिव का कण्ठ, विष्णु का शरीर, दिग्गजों के मदजल की कालिमा वाले गण्डस्थल कालिमा से युक्त हैं, बताओ तो सही, तुम्हारे यश ने किस किस वस्तु को धवलित किया ? __ यहाँ चन्द्रमा का कलङ्क आदि वस्तुओं के सफेद न बनाये जाने का (धवलीकरणाभाव का) दोष गुण के रूप में पर्यवसित नहीं होता, अपि तु निषेधरूप में प्रतीत होता है, अतः इससे इस अन्य गुण की प्रतीति होती है कि इनसे अतिरिक्त अन्य समस्त संसार