Book Title: Kuvayalanand
Author(s): Bholashankar Vyas
Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan

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Page 333
________________ २३६ कुवलयानन्दः ७६ पूर्वरूपालङ्कारः पुनः स्वगुणसंप्राप्तिः पूर्वरूपमुदाहृतम् । हरकण्ठांशुलिप्तोऽपि शेषस्त्वद्यशसा सितः ॥ १४२ ।। यथा वा विभिन्नवर्णा गरुडाग्रजेन सूर्यस्य रथ्याः परितः स्फुरन्त्या ।। रत्नैः पुनर्यत्र रुचा रुचं स्वामानिन्यिरे वंशकरीरनीलैः॥ अयमेव तद्गुण इति केचिद्व्यवजह्वः ।। १४२ ।। पूर्वावस्थानुवृत्तिश्च विकृते सति वस्तुनि । दीपे निर्वापितेऽप्यासीत् काञ्चीरत्नैर्महन्महः ॥ १४३॥ यहाँ पेड़ के हरे पत्ते राज-शत्रुरमणियों के नाखूनों की श्वेत कान्ति का (उत्कृष्ट गुण) ग्रहण कर लेते हैं तथा अपने गुण हरेपन को छोड़ देते हैं, अतः तद्गुण अलङ्कार है। ७६. पूर्वरूप अलङ्कार १४२-जहाँ कोई पदार्थ एकबार अपने गुण को छोड़ कर पुनः अपने गुण को प्राप्त कर ले, वहाँ पूर्वरूप अलङ्कार होता है। जैसे, (कोई कवि किसी राजा की प्रशंसा करते कह रहा है) हे राजन् , शेष महादेव के कण्ठ की नील कान्ति से नीला होने पर भी तुम्हारे यश के कारण पुनः सफेद हो गया है। इसी का दूसरा उदाहरण यह है :-.. इस रैवतक पर्वत पर जाज्वल्यमान बाँस तथा करीर के समान हरे रङ्ग के रत्न अपनी प्रसरण शील कान्ति से उन सूर्य के घोड़ों को पुनः अपनी कान्ति से युक्त बना देते हैं, जो गरुड के बड़े भाई अरुण की कान्ति से मिश्रित रङ्ग वाले बना दिये गये हैं। __सूर्य के घोड़े स्वभावतः हरे हैं, वे अरुण की कान्ति से लाल हो जाते हैं, किन्तु रैवतक पर्वत पर जाज्वल्यमान हरिन्मणियों की कान्ति को ग्रहण कर पुनः हरे होकर पूर्वरूप को प्राप्त करते हैं, यह पूर्वरूप अलङ्कार है। __ कुछ आलङ्कारिक इसी अलङ्कार को तद्गुण मानते हैं। टिप्पणी-मम्मटाचार्य ने पूर्वरूप को अलग से अलंकार नहीं माना है । वे यहाँ तद्गुण ही मानते हैं। 'विभिन्नवर्णा गरुडाग्रजेन' इत्यादि पद्य में वे तद्गुण ही मानते हैं । रुय्यक का भी यही मत हैं । (दे० अलंकारसर्वस्व पृ० २१४) ___ पण्डितराज ने इसे तद्गुण ही माना है। वे बताते हैं कि कुछ लोग इसके एक भेद को पूर्वरूप मानते हैं-इमं केचित् पूर्वरूपमामनन्ति । पण्डितराज ने तद्गुण का जो दूसरा उदाहरण दिया है, वह अप्पयदीक्षित के मतानुसार पूर्वरूप का उदाहरण होगा। अधरेण समागमाद्रदानामरुणिम्ना पिहितोऽपि शुद्धभावः। हसितेन सितेन पचमलाख्याः पुनरुल्लासमवाप जातपक्षः॥ (रसगङ्गाधर पृ० ६९२) १४३-किसी वस्तु के विकृत हो जाने पर भी जहाँ पूर्वावस्था की अनुवृत्ति हो, वहाँ भी पूर्वरूप अलङ्कार होता है । जैसे, (रति के समय) दीपक के बुझा देने पर भी नायिका की करधनी के रत्नों के कारण महान् प्रकाश बना रहा।

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