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तत्तन्नामकजातिसूचनम् | नक्षत्रमालायामग्न्यादिदेवतानामभिर्नक्षत्र सूचनमित्यादावयमेवालङ्कारः । एवं नाटकेषु वक्ष्यमाणार्थसूचनेष्वपि ॥ १३६ ॥
७४ रत्नावल्यलङ्कारः
क्रमिकं प्रकृतार्थानां न्यासं रत्नावलीं विदुः ।
चतुरास्यः पतिर्लक्ष्म्याः सर्वज्ञस्त्वं महीपते ! ॥ १४० ॥ अत्र चतुरास्यादिपदैवर्णनीयस्य राज्ञो ब्रह्मविष्णुरुद्रात्मता प्रतीयत इति प्रसिद्धसहपाठानां ब्रह्मादीनां क्रमेण निवेशनं रत्नावली ।
यथा वा, -
रत्नावल्यलङ्कारः
रत्याप्तप्रियलाञ्छने कठिनतावासे रसालिङ्गिते
प्रह्लादैकरसे क्रमादुपचिते भूभृद्गुरूत्वापहे । कोकस्पर्धिनि भोगभाजि जनितानङ्गे खलीनोन्मुखे
भाति श्रीरमणावतारदशकं बाले ! भवत्याः स्तने ॥
लक्षणयुक्त छन्दःशास्त्र के विषय होने के कारण उसकी सूचनीयता है ही, इस प्रकार लक्षण को तदनुसार माना जा सकता है । इसी प्रकार भगवत्स्तुतिपरक नौ पद्यों के संग्रह ( नवरत्नमाला ) में तत्तत् रत्नों के नाम का निर्देश करने से तत्तत् रत्नजाति की सूचना में भी मुद्रा अलङ्कार होगा । ऐसे ही नक्षत्रमाला ( भगवत्स्तुतिपरक २७ पद्यों के संग्रह ) में, अग्नि आदि देवताओं के नाम का निर्देश करने से तत्तत् अश्विनी आदि नक्षत्रों की 'सूचना | में भी यही अलंकार होगा। इसी तरह नाटक में भी जहाँ भविष्य में वर्णनीय ( वच्यमाण ) अर्थ की सूचना दी जाय, मुद्रा अलंकार ही होता है।
टिप्पणी--- नाटकसम्बन्धी मुद्रा अलंकार का उदाहरण चन्द्रिकाकार ने अनर्धराघव के प्रस्तावनाभाग की सूत्रधार की निम्न उक्ति दी है, जहाँ वक्ष्यमाण रामरावणवृत्तान्त की सूचना पाई जाती है :
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यान्ति न्यायप्रवृत्तस्य तिर्यञ्चोऽपि सहायताम् । अपन्थानं तु गच्छन्तं सोदरोऽपि विमुञ्चति ॥ ७४. रत्नावली अलङ्कार
१४० - जहाँ प्रकृत 'अर्थों को प्रसिद्ध क्रम के आधार पर ही रखा जाय, वहाँ रत्नावली अलङ्कार माना जाता है । जैसे, हे राजन्, तुम चतुर व्यक्तियों में श्रेष्ठ (चार मुँह वाले ) ब्रह्मा, लक्ष्मी के पति विष्णु, तथा सर्वज्ञ महादेव हो ।
यहाँ चतुरास्य आदि पदों के द्वारा प्रकृत राजा को ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव रूप बताया गया है । यहाँ ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव का प्रयोग प्रसिद्धक्रम के अनुसार किया गया है, अतः यह रत्नावली अलङ्कार है । इसी का उदाहरण निम्न है
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कोई रसिक कवि किसी नायिका के स्तनों की प्रशंसा करता कह रहा है । हे बाले, तेरे स्तनों पर लक्ष्मी के रमण (विष्णु) के दस अवतार सुशोभित हो रहे हैं । ( व्यंग्यः है, तेरे स्तन शोभा (लक्ष्मी) के निवासस्थान हैं ।) तुम्हारे स्तन सुरत के समय प्रिय के द्वारा दत्त नखक्षतादि चिह्नों को धारण करते हैं, ( रति के प्रिय कामदेव के लान्छन मत्स्य रूप हैं, मत्स्यावतार ) वे कठिनता के निवासभूत अर्थात् कठोर हैं ( कठिनता के