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कुवलयानन्दः
४३ अन्योन्यालङ्कारः अन्योन्यं नाम यत्र स्यादुपकारः परस्परम् ।
त्रियामा शशिना भाति शशी भाति त्रियामया ॥ ६८ ॥ यथा वा
यथोवर्धाक्षः पिबत्यम्बु पथिको विरलाङ्गुलिः ।
तथा प्रपापालिकापि धारां वितनुते तनुम् ।। अत्र प्रपापालिकायाः पथिकेन स्वासक्त्या पानीयदानव्याजेन बहकालं स्वमुखावलोकनमभिलषन्त्या विरलाङ्गुलिकरणतश्चिरं पानीयदानानुवृत्तिसम्पा.
'भृणालसूत्रान्तरमप्यलभ्यम् ॥' यहाँ यह संकेत कर देना अनावश्यक न होगा कि अल्प नामक अलंकार अन्य आलंकारिकों ने नहीं माना है। मम्मट, रुय्यक, जयदेव तथा पण्डितराज जगन्नाथ ने इसका संकेत भी नहीं किया है। अप्पयदीक्षित ने स्वयं यह अलंकार कल्पित किया जान पड़ता है। अन्य आलंकारिक इसे अधिक अलंकार का ही भेद मानते जान पड़ते हैं । नागेश ने काव्यप्रकाश उद्योत में अल्प को अलग अलंकार मानने के मत का खण्डन किया है :__ 'तेन यत्र सूचमत्वातिशयवत आधाराधेयाद्वा तदन्यतरस्यातिसूक्ष्मत्वं वर्ण्यते तत्राप्य यम् । यथा-'मणिमालोमिका तेऽद्य करे जपवटीयते' अत्र मणिमालामयी उर्मिका अंगुली मितत्वादतिसूक्ष्मा, साऽपि विरहिण्याः करे तत्कंकणवत्प्रवेशिता तस्मिञ्जपमालावल्लम्बते इत्युक्त्या ततोऽपि करस्य विरहकार्यादतिसूक्ष्मता दर्शिता । एतेन ईदृशे विषयेऽल्पं नाम पृथगलंकार इत्यपास्तम् । उद्योत (काव्यप्रकाश पृ० ५५९ )
४३. अन्योन्य अलङ्कार .. ९८-जहाँ दो वर्ण्य परस्पर एक दूसरे का उपकार करें, वहाँ अन्योन्य अलङ्कार होता है । जैसे, रात्रि चन्द्रमा के द्वारा सुशोभित होती है और चन्द्रमा रात्रि के द्वारा। __ यहाँ चन्द्रमा रात्रि का उपकार कर रहा है, रात्रि चन्द्रमा का उपकार कर रही है, दोनों एक दूसरे का परस्पर उपकार कर रहे हैं, अतः यहाँ अन्योन्य अलङ्कार है।
अथवा जैसे,
कोई राहगीर किसी प्याउ पर पानी पी रहा है। पानी पिलाने वाली प्रपापालिका कोई सुन्दरी युवती है। उसे देखकर राहगीर पानी पीना भूल जाता है। वह हाथ की अंगुलियों को असंलग्न कर देता है, ताकि प्रपापालिका के द्वारा गिराया हुआ पानी नीचे बहता रहे और इस बहाने वह पानी पीता रहे। प्रपापालिका भी उसके भाव को ताड़ जाती है, वह समझ जाती है कि यह जल पीने का बहाना है, वस्तुतः वह उसके 'पानिप' का पिपासु है। वह भी पानी की धारा को मन्द कर देती है, ताकि राहगीर को यथेष्ट दर्शनावसर मिले।
'पथिक जैसे ही विरल अंगुलियाँ किए, ऊपर आँखे उठाए, पानी पी रहा है, वैसे ही प्रपापालिका भी पानी की धारा को मन्दा कर देती है।' । यहाँ राहगीर ने अंगुलियों को विरल (असंलग्न ) करके बड़ी देर पानी देने की (मौन) प्रार्थना के द्वारा उस प्रपापालिका, जो पानी पिलाने के बहाने अपने प्रति लोगों का बड़ी.