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कुवलयानन्दः
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यत्रामुष्य सुधीभवन्ति किरणा राशेः स यासामभूत् ।
यस्तत्पित्तमुषः सु योऽस्य हविषे यस्तस्य जीवात वे
वोढा यद्गुणमेष मन्मथरिपोस्ताः पान्तु वो मूर्तयः ।। १०५-१०६ ।। ४८ मालादीपकालङ्कारः दीपावलीयोगान्मालादीपकमिष्यते ।
स्मरेण हृदये तस्यास्तेन त्वयि कृता स्थितिः ॥ १०७ ॥ अत्र स्थितिरिति पदमेकं स्मरेण तस्या हृदये स्थितिः कृता, तेन तस्य
चमकता है (सूर्य), जिसमें इस ( सूर्य ) की किरणें अमृत बन जाती हैं (चन्द्रमा ), वह (चन्द्र) जिनकी राशि ( अपां राशि:- समुद्र ) से उत्पन्न हुआ ( जल ), जो इनका ( जल ) पित्त है ( अग्नि ); जो इसे ( अग्नि को ) हवि देता है ( यजमान ), जो उसके ( यजमान के ) जीवन के लिए प्राणाधायक है (वायु), और जिसके गुण ( पृथिवी के गुण गंध) को यह (वायु) बहा के ले जाता है ( पृथिवी ) । इस प्रकार आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, जल, अग्नि, यजमान, वायु तथा पृथिवी के रूप में स्थित शिव की अष्टमूर्तियाँ तुम्हारी रक्षा करें ।
यहाँ आकाश से लेकर पृथिवी रूप पूर्व पूर्व पदार्थ उत्तरोत्तर के विशेषण हैं. अतः एकावली अलंकार है ।
४८ मालादीपक अलंकार
१०७ - जहाँ एक साथ दीपक तथा जवली दोनों अलंकारों की स्थिति हो, वहाँ मालादीपक होता है । इसका उदाहरण है । ( कोई दूती नायक से कह रही है । ) हे नायक, उस नायिका के हृदय में कामदेव ने निवास किया है और उस नायिका के हृदय ने तुझ में निवास किया है ।
टिप्पणी- काव्य प्रकाशकार मम्मटाचार्य ने इस अलकार को दीपक अलंकार के प्रकरण में ही वर्णित किया है ।
यहाँ 'स्थितिः कृता' का अन्वय कामदेव तथा हृदय दोनों के साथ लगता है, इसलिए दीपक अलंकार है । इसी उदाहरण में पहले तो नायिका के हृदय का ग्रहण कामदेव के निवासस्थान के रूप में किया गया, फिर नायक को नायिका के हृदय का आधार बनाकर पहले निवासस्थान का त्याग किया, अतः ग्रहणत्याग की रीति के कारण एकावली भी हुई। इन दोनों अलंकारों का एक साथ सन्निवेश होने से यहाँ मालादीपक अलंकार है ।
टिप्पणी- रसिकरंजनीकार ने बताया है कि कुछ विद्वान् मालादीपक को अलग से अलंकार नहीं मानते । वे इसे दीपक तथा एकावली का संकर मानते हैं । यदि संकर होने पर भी इसे अलग अलंकार माना जायगा, अलंकारों के दूसरे संकर भी संकर में अन्तर्भावित न होंगे। रसिकरंजनीकार मालादीपक को अलग से अलंकार मानने की पुष्टि करते हैं । वस्तुतः यहाँ दीपक अलंकार इसलिए नहीं माना जा सकता कि ( वक्ष्यमाण ) 'संग्रामांगण' इत्यादि पद्य में कोदण्डादि सभी प्रस्तुत हैं, जब कि दीपक में प्रस्तुताप्रस्तुत का एकधर्माभिसंबंध पाया जाता है | अतः यहाँ प्रस्तुताप्रस्तुतैकधर्मान्वय दीपक नहीं है । यदि कोई यह कहे कि यहाँ प्रस्तुतैकरूपधर्मान्वय होने के कारण तुल्ययोगिता मान ली जाय, तो यह कहना ठीक नहीं, क्योंकि फिर यहाँ तुल्ययोगितासंकर होगा । असल बात यह है कि मालादीपक के प्रकरण में