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परिसंख्यालङ्कारः
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यथा वा
विलयन्ति श्रुतिवर्त्म यस्यां लीलावतीनां नयनोत्पलानि ।
बिभर्ति यस्यामपि वक्रिमाणमेको महाकालजटार्धचन्द्रः ।। आद्योंदाहरणे निषेधः शाब्दः, द्वितीये त्वार्थः ।। ११३ ॥
अथवा जैसे
उज्जयिनी का वर्णन है। जिस पुरी में केवल लीलावती रमणियों के नेत्र रूपी कमल ही श्रुतिवर्त्म का लंघन करते थे ( कानों को छूते थे) अन्य कोई भी श्रुतिवर्म (वेदमार्ग) का उल्लंघन नहीं करता था, तथा उस पुरी में केवल महाकाल शिव के जटाजूट का चन्द्रमा ही वक्रिमा धारण करता था, कोई भी व्यक्ति कुटिल न था। ___ यहाँ 'श्रुतिवर्म' तथा 'वक्रिमा' के अर्थ क्रमशः 'वेदमार्ग' और 'कानों की सीमा' तथा 'कुटिलता' और 'टेढ़ापन' हैं। यहाँ प्रथम अर्थ का निषेध कर रमणियों के नयन तथा शिवजटा में स्थित चन्द्रमा के पक्ष में उसकी सत्ता बताई गई है। किन्तु इन शब्दों के द्वयर्थक होने से वहाँ कोई भी व्यक्ति वेदविरोधी एवं कुटिल न था, यह निषेध भी गम्यमान होता है । इस प्रकार यहाँ यह निषेध साक्षात् शब्दोपात्त न होकर केवल अर्थगम्य है।
यहाँप्रथम उदाहरण में शाब्दी परिसंख्या है, क्योंकि रमणियों के हृदय में स्नेहक्षय का शब्दतः निषेध किया गया है, दूसरे उदाहरण में आर्थी परिसंख्या है।
टिप्पणी-रुय्यक ने इसके चार भेदं माने हैं। सर्वप्रथम प्रश्नपूर्विका तथा शुद्धा ये दो भेद दिये हैं. तदनन्तर प्रत्येक के शाब्दी तथा आर्थी। (साचैषा प्रश्नपूर्विका तदन्यथा वेति प्रथम द्विधा । प्रत्येकं च वर्जनीयत्वेऽस्य शाब्दत्वार्थत्वाभ्यां द्वैविध्यमिति चतुःप्रभेदाः । अलंकारसर्वस्व पृ० १९३ ) । प्रश्नपूर्विका शाब्दी परिसख्या तथा आर्थी परिसंख्या के उदाहरण निम्न हैं:(१)किं भूषणं सुद्धमत्र यशो न रत्नं किं कार्यमार्यचरितं सुकृतं न दोषः ।
किं चक्षुरप्रतिहतं धिषणा न नेत्रं जानाति कस्वदपरः सदसद्विवेकम् ॥ (२) किमासेम्यं पुंसां सविधमनवयं धुसरितः
किमेकान्ते ध्येयं चरणयुगलं कौस्तुभमृतः। किमाराध्यं पुण्यं किमभिलषणीयं च करुणा
यदासक्त्या चेतो निरवधि विमुक्त्यै प्रभवति ॥ रुय्यक ने शुद्धा परिसंख्या के आर्थी वाले उदाहरण में वही उपयुद्धृत पद्य दिया है जो दीक्षित ने दिया है। परिसंख्या में प्रायः इलेषगर्मित होने पर ही विशेष चमत्कारवत्ता पाई जाती हैं। सुबन्धु, बाण तथा त्रिविक्रम भट्ट परिसंख्या के प्रयोग के लिए विशेष प्रसिद्ध हैं। परिसंख्या के कुछ उदाहरण निम्न हैं:
(१) यस्मिश्च राजनि जितजगति पालयति महीं चित्रकर्मसु वर्णसंकराः....."छत्रेषु कनकदण्डाः .........'न प्रजानामासन् । यस्य च...."अन्तःपुरिकाकुन्तलेषु भंगः नूपुरेषु मुखरता अभूत् । (कादम्बरी)
इस उदाहरण के प्रथम वाक्य में शाब्दी शुद्धा परिसंख्या है, द्वितीय वाक्य में आर्थी शुद्धा परिसंख्या है।
(२) यत्र च गुरुव्यतिक्रमं राशयः, मात्राकलहं लेखशालिकाः, मित्रोदयद्वेषमुलकाः, अपत्यत्यागं कोकिला:, बन्धुजीवविघातं ग्रीष्मदिवसाः कुर्वन्ति न जनाः। (नलचम्पू)
इस उदाहरण में शाब्दी शुद्धा परिसंख्या है।