Book Title: Kuvayalanand
Author(s): Bholashankar Vyas
Publisher: Chowkhamba Vidyabhawan

View full book text
Previous | Next

Page 293
________________ कुवलयानन्दः अद्याराधनतोपितेन विभुना युष्मत्सपर्यासुखा. ___लोकोच्छेदिनि मोक्षनामनि महामोहे निलीयामहे ।। अत्र मोक्षस्य महामोहत्वमसिद्धमिति तत्समर्थने सुखालोकोच्छेदिनीति पदार्थों हेतुः । कचित्पदार्थवाक्यार्थौ परस्परसापेक्षौ हेतुभावं भजतः । यथा वा ( नैषध० २।२०) चिकुरप्रकरा जयन्ति ते विदुषी मूर्धनि यान्विभर्ति सा। पशुनाप्यपुरस्कृतेन तत्तुलनामिच्छति चामरेण कः ।। अत्र चामरस्य दमयन्तीकुन्तलभारसाम्याभावेऽपि 'विदुषी मूर्धनि यान्बिभर्ति सा' इति वाक्यार्थः, 'पशुनाप्य पुरस्कृतेन' इति षदार्थश्चेत्युभयं मिलितं हेतुः कचित्समर्थनीयार्थसमर्थनार्थे वाक्यार्थे पदार्थो हेतुः । मेरी पूजा से प्रसन्न होकर मुझे तुम्हारी पूजा के सुख से रहित, मोक्ष रूपी महामोह के गर्त में गिरा दिया है । भाव यह है, आज शिव ने प्रसन्न होकर मुझे मोक्ष दे दिया है, इस लिए मुझे अब भस्म, रुद्राक्षमाला, शिवमन्दिर सोपानतति के सहयोग का सुख नहीं मिल पायगा। यहाँ 'मोक्ष' को महामोह बताया गया है। दर्शनशास्त्र में मोक्ष को परमानन्दरूप माना है, किन्तु उसे महामोहरूप मानना अप्रसिद्ध है, अतः इसके लिए समर्थन की अपेक्षा होती है। इसका समर्थन करने के लिए 'सुखालोकोच्छेदिनि' यह पदार्थ हेतु रूप में उपन्यस्त किया गया है। क्योंकि मोक्ष की स्थिति में सपर्या-सुख (पूजा-सुख) नष्ट हो जाता है, अतः उसे महामोह माना गया है। कभी कभी एक ही काग्य में एक साथ पदार्थहेतुक तथा वाक्यार्थहेतुक दोनों तरह का काम्यलिङ्ग पाया जाता है। ऐसे स्थलों में पदार्थ तथा वाक्यार्थ परस्पर एक दूसरे के सापेक्ष होते हैं, तथा वे किसी उक्ति विशेष के हेतु होते हैं। उदाहरण के लिए नैषध के द्वितीय सर्ग का निम्न पथ लीजिये कवि दमयन्ती के केशपाश का वर्णन कर रहा है। जिन बालों को वह बुद्धिमती दमयन्ती अपने सिर पर धारण करती हैं, वे सर्वोत्कृष्ट हैं। ऐसा कौन होगा, जो उन बालों की तुलना चमरी के चामर (पुच्छभार) से करे, जिसे (बुद्धिहीन ) पशु (चमरी गाय) ने भी पीछे रख रखा है (आदर के साथ पुरस्कृत नहीं किया है)। भाव यह है, कुछ कवि दमयन्ती के बालों की तुलना चमरी के पुच्छभार से देना चाहें, पर यह तुलना गलत होगी। क्योंकि चमरी ने भी जिसमें बुद्धि का अभाव है-अपनी पूँछ के बालों को इस. लिए पीछे रख रखा है कि वे पुरस्कृतं करने लायक नहीं हैं, जब कि विदुषी दमयन्ती ने अपने बालों को शिर पर धारण कर उन्हें आदर दिया है। अतः उनकी परस्पर तुलना हो ही कैसे सकती है? ' यहाँ चामर दमयन्ती के केशभार की समता नहीं रखते, इसके समर्थन के लिए जिन्हें विदुषी दमयन्ती सिर पर धारण करती है' यह वाक्यार्थ, तथा 'पशु के द्वारा भी अनाहत ( अपुरस्कृत ) यह पदार्थ दोनों मिलाकर हेतुरूप में उपन्यस्त किये गये हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394