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कुवलयानन्द:
यथा वा
शरणं किं प्रपन्नानि विषवन्मारयन्ति वा ।
न त्यज्यन्ते न भुज्यन्ते कृपणेन धनानि यत् ।। अमुं क्रमालङ्कार इति केचिद्व्याजदुः ।। १०६ ।।
५१ पर्यायालङ्कारः पर्यायो यदि पर्यायेणैकस्यानेकसंश्रयः ।
पञ मुक्त्वा गता चन्द्रं कामिनीवदनोपमा ॥ ११० ॥ अत्रैकस्य कामिनीवदनसादृश्यस्य क्रमेण पद्मचन्द्ररूपानेकाधारसंश्रयणं पर्यायः । यद्यपि पनसंश्रयणं कण्ठतो नोक्तं, तथापि 'पद्मं मुक्त्वा' इति तत्परित्यागोक्त्या प्राक् तत्संश्रयाक्षेपेण पर्यायनिर्वाहः । अत एव (बालभारते )
'श्रोणीबन्धसत्यजति तनुतां सेवते मध्यभागः ।
पद्भ्यां मुक्तास्तरलगतयः संश्रिता लोचनाभ्याम । ___ अथवा जैसे
कास लोग धन को न तो छोड़ते ही हैं, न उनका उपयोग ही करते हैं। क्या धन कासों के शरण में आ गये हैं, इसलिए वे उन्हें नहीं छोड़ते, अथवा वे उन्हें विष की सरह मार देते हैं, इसलिए उनका उपयोग नहीं करते?
यहाँ धन का त्याग न करने की क्रिया (न त्यज्यन्ते), तथा उपयोग न करने की क्रिया (न भुज्यन्ते)का अन्वय क्रमशः 'किं शरणं प्रपन्नानि' तथा 'किं विषवन्मारयन्ति' के साथ घटित होता है, अतः यथासंख्यालङ्कार है। इसी अलङ्कार को कुछ आलङ्कारिकों ने क्रमालकार कहा है।
५१. पर्याय अलङ्कार ११०-जहाँ एक पदार्थ का क्रम से अनेक पदार्थों के साथ सम्बन्ध वर्णित किया जाय, वहाँ पर्याय अलङ्कार होता है। जैसे, कामिनी के मुख की उपमा (रात्रि के समय) कमल को छोड़कर चन्द्रमा में चली गई।
यहाँ कामिनीमुख की उपमा दिन में कमल में अन्वित होती थी, अब रात के समय वह चन्द्रमा में चली गई है, अतः मुख की उपमा का क्रम से अनेक पदार्थों में आश्रय
गारों में
__यहाँ एक पदार्थ-कामिनीवदनसारश्य की क्रम से पद्मचन्द्ररूप अनेक आधारा स्थिति बताई गई है, अतः पर्याय है । यद्यपि ऊपर की उक्ति में उसकी पद्मस्थिति वाच्यरूप में स्पष्टता नहीं कही गई है, तथापि पन को छोड़ कर (वह चन्द्र में चली गई है) इसके द्वारा पन को छोड़ने के द्वारा कामिनीवदनसादृश्य पहले पन में था, यह प्रतीत होता ही है, अतः उसकी पत्नस्थिति आक्षिप्त हो जाती है और इस प्रकार पर्याय का निर्वाह हो जाता है। इसीलिये काव्यप्रकाशकार मम्मटाचार्य ने काव्यप्रकाश में पर्याय का निम्न उदाहरण दिया है।
किसी नायिका के यौवनाविर्भाव की दशा का वर्णन है। यौवन ने इस नायिका के शरीर के तत्तदङ्गों के गुणों का परस्पर विनिमय कर दिया है । यौवन के कारण इस नायिका के एक भा के गुण दूसरे अज में तथा दूसरे अङ्ग के गुण किसी अन्य में चले गये हैं। शेश