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कुवलयानन्दः
दिविश्रितवतश्चन्द्रं सैंहिकेयभयाद्भुवि ।
शशस्य पश्य तन्वङ्गि ! साश्रयस्य ततो भयम् ॥
अत्र न केवलं शशस्य स्वानर्थपरिहारानवाप्तिः, किंतु साश्रयस्याप्यनर्थावाप्तिरिति दर्शितम् | परानिष्टप्रापणरूपेष्टार्थसमुद्यमात् । तदुभयं यथादिधक्षन् मारुतेर्वालं तमादीप्यद्दशाननः । आत्मीयस्य पुरस्यैव सद्यो दहनमन्वभूत् ॥
'पुरस्यैव' इत्येवकारेण परानिष्टप्रापणाभावो दर्शितः । 'अनिष्टस्याप्यवाप्तिश्च' इति लोकेऽनिष्टावाप्तेः 'अपि' शब्दसंगृहीताया इष्टानवाप्तेश्च प्रत्येकमपि विषमपदेनान्वयः । ततश्च केवलानिष्टप्रतिलम्भः केवलेष्टानवाप्तिश्चेत्यन्यदपि विषमद्वयं लक्षितं भवति ।
तत्र केवलानिष्टप्रतिलम्भो यथा
पद्मातपत्ररसिके सरसीरुहस्य
किं बीज मर्पयितुमिच्छसि वापिकायाम् । कालः कलिर्जगदिदं न कृतज्ञमज्ञे !
स्थित्वा हरिष्यति मुखस्य तवैव लक्ष्मीम् ॥
अत्र पद्मातपत्रलिप्सया पद्मबीजावापं कृतवत्यास्तल्लाभोऽस्त्येव, किंतु मुखशोभाहरणरूपोत्कटानिष्टप्रतिलम्भः ।
'हे सुन्दरि देखो, पृथ्वी पर शेर से डर कर आकाश में चन्द्रमा का आश्रय पाते हुए खरगोश को वहां 'आश्रय सहित सैंहिकेय (शेर, राहु ) से भय रहता है ।"
यहाँ खरगोश के अपने केवल अनर्थ का परिहार ही नहीं हो सका अपितु उसके आश्रय को भी अनर्थ की प्राप्ति हो गई है।
जहाँ दूसरे के अनिष्ट करने का इष्टार्थ समुद्यम हो, जैसे इस पद्य में—
'हनुमान् के बालों (पूँछ ) को जलाने की इच्छा वाले रावण ने उसी समय अपने ही नगर के दाह का अनुभव किया ।'
यहाँ 'पुरस्य एव' में 'एव' के द्वारा दशानन दूसरे का अनिष्ट न कर सका यह भाव प्रतीत होता है। तृतीय विषम के कक्षण में 'अनिष्टस्याप्यवाप्तिश्च' इस श्लोक में अनिष्टवाप्ति तथा इष्टानवाप्ति प्रत्येक के साथ 'अपि' शब्द का संग्रह होकर दोनों का पूर्वोक्त विषमपद के साथ अन्वय होता है। इस प्रकार केवल अनिष्टप्राप्ति, तथा केवल इष्टानवाप्ति इन दो प्रकार का विषम भी होता है ।
केवल अनिष्टप्राप्ति का उदाहरण जैसे :
कोई कवि बावली में कमल के बीज बोती सुन्दरी से कह रहा है :
'हे मूर्ख, तू कमल के छत्र की इच्छा से बावली में कमल के बीज क्यों बो रही है ? तुझे पता होना चाहिए कि यह कलियुग है, इस संसार में कोई भी कृतज्ञ नहीं है । यह कमल तेरे ही मुख की शोभा को हरेगा ।"
यहाँ पद्मातपत्र की इच्छा से कमल बीजों को बोती सुन्दरी को पद्मातपत्र का लाभ तो होता ही है, किन्तु उससे मुखशोभाहरणरूप महान् अनिष्ट की प्राप्ति हो रही है।