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कुवलयानन्दः
इयं भूतिर्नाङ्गे प्रियविरहजन्मा धवलिमा
पुरारातिभ्रान्त्या कुसुमशर ! किं मां प्रहरसि ।। अत्र कल्पितभ्रान्तिः 'जटा नेयम्' इत्यादिनिषेधमात्रोन्नेया, पूर्ववत्प्रश्नाभावात् । दण्डी त्वत्र तत्त्वाख्यानोपमेत्युपमाभेदं मेने । यदाह
'न पद्मं मुखमेवेदं, न भृङ्गौ चक्षुषी इमे । इति विस्पष्टसादृश्यात्तत्त्वाख्यानोपमैव सा' ।। २६ ।। इति ।। छेकापह्नुतिरन्यस्य शङ्कातस्तथ्यनिह्नवे ।
प्रजल्पन्मत्पदे लग्नः कान्तः किं ? नहि, नूपुरः ॥ ३० ॥ कस्यचित्कश्चित्प्रति रहस्योक्तावन्येन श्रुतायां स्वोक्तेस्तात्पर्यान्तरवर्णनेन तथ्य निह्नवे छेकापह्नतिः । यथा नायिकाया नर्मसखी प्रति 'प्रजल्पन्मत्पदे लग्नः' इति स्वनायकवृत्तान्ते निगद्यमाने तदाकण्य ‘कान्तः किम्' इति शङ्कितवतीमन्यां प्रति 'नहि, नूपुरः' इति निह्नवः । पर यह चन्द्रकला न होकर जूड़े में लगाये फूल हैं। यह जो तुम्हें मेरे शरीर पर पांडुता दिखाई दे रही है, वह भस्म नहीं, किंतु प्रिय के विरह से उत्पन्न पाण्डुता है। हे कामदेव, तू मुझे भ्रांति से पुराराति (महादेव) समझ कर मेरे ऊपर प्रहार क्यों कर रहा है।
यहाँ 'जटा नेयम्' इत्यादि के द्वारा व्यक्त कल्पित भ्रांति केवल निषेधमात्र से प्रतीत हो रही है, पहले उदाहरणों की भांति यहां प्रश्नपूर्विका सरणि नहीं पाई जाती । दण्डी इस प्रकार के स्थलों में तत्वाख्यानोपमा नामक उपमाभेद मानते हैं। जैसा कि कहा गया है___ 'यह कमल नहीं मुँह ही है, ये भौंरे नहीं आँखें हैं। इस प्रकार जहां स्पष्ट सादृश्य के कारण तत्त्व (तथ्य) की प्रतिष्ठापना की जाय, वहाँ उपमा अलंकार ही होता है।'
३०-जहाँ अन्य वस्तु की शंका होने पर वास्तविकता को छिपाकर अवास्तविकता की प्रतिष्ठापना की जाय, वहाँ छेकापह्नति अलंकार होता है। जैसे, वह शब्द करता हुआ मेरे पैरों में आ लगा; क्या प्रिय, नहीं सखि नूपुर ।
टिप्पणी-छेकापहृति को कुछ विद्वान् अलग से अलंकार नहीं मानते, वे इसका समावेश व्याजोक्ति में ही करते हैं।
(छेक शब्द का अर्थ है चतुर व्यक्ति। चतुर व्यक्ति के द्वारा वास्तविकता का गोपन करने के लिए प्रयुक्त अपह्नति को छेकापह्नति कहा जाता है। इसका लक्षण यह है कि जहाँ प्रयुक्त वाक्य की अन्य प्रकार से योजना करके शंकित तात्विक वस्तु की निद्भुति (निषेध) की जाय, वहाँ छेकापह्नुति होगी।
छेको विदग्धः, तत्कृतापहृतिश्छेकाहुतिरिति लक्ष्यनिर्देशो वाक्यान्यथायोजनाहेतुकः शंकिततात्विकवस्तुनिषेध इति लक्षणम् । ( चन्द्रिका पृ० २९)
कोई व्यक्ति किसी विश्वस्त व्यक्ति से रहस्य की बात कह रहा हो और कोई अन्य व्यक्ति उसे सुन ले तो अपनी उक्ति का अन्य तात्पर्य बताकार जहाँ उस अन्य व्यक्ति से तथ्य का गोपन किया जाय वहाँ छेकापति अलंकार होता है। जैसे कारिकाध के उदाहरण में कोई नायिका अपनी नर्मसखी से 'प्रजल्पन्मत्पदे लग्नः' इस प्रकार अपने नायक का वृत्तान्त कह रही है, उसे सुनकर दूसरी सखी प्रिय के विषय में शंका कर पूछ बैठती