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कुवलयानन्दः
मोहेनान्तर्वरतनुरियं लक्ष्यते मुक्तकल्पा
गङ्गा रोधःपतनकलुषा गृहतीव प्रसादम् ।। अत्र तमःप्रभृतीन्विना निशादीनां रम्यत्वं 'विना' शब्दमन्तरेण दर्शितम् ।।
२३ समासोक्त्यलङ्कारः समासोक्तिः परिस्फूर्तिः प्रस्तुतेऽप्रस्तुतस्य चेत् ।
अयमैन्द्रीमुखं पश्य रक्तश्चम्बति चन्द्रमाः ॥ ६१ ॥ यत्र प्रस्तुतवृत्तान्ते वर्ण्यमाने विशेषणसाम्यबलादप्रस्तुतवृत्तान्तस्यापि परिस्फूर्तिस्तत्र समासोक्तिरलङ्कारः, समासेन संक्षेपेण प्रस्तुताप्रस्तुतवृत्तान्तयोर्वचनात् । उदाहरणम्-अयमैन्द्रीति । अत्र हि चन्द्रस्य प्राचीप्रारम्भलक्षणमुखसं. बन्धलक्षणे उदये वर्ण्यमाने 'मुखशब्दस्य' प्रारम्भवदनसाधारण्यात् 'रक्त' शब्द: स्यारुणकामुकसाधारण्यात् 'चुम्बति' इत्यस्य प्रस्तुतार्थसंबन्धमात्रपरस्य शक्यार्थी प्रकार तट के गिरने से मैली गंगा पुनः निर्मलता को प्राप्त करती सी प्रतीत होती है, ठीक उसी प्रकार यह कोमलाङ्गी अपने हृदय में मोह (मानावेश) के द्वारा थोड़ी-थोड़ी परित्यक्त जान पड़ती है।
यहाँ अन्धकारादि के बिना रात्रि आदि तत्तत्" पदार्थ सुन्दर लगते हैं, इस भाव को यहाँ 'बिना' शब्द का प्रयोग किये दिना ही दर्शाया गया है। यहाँ भी विनोक्ति आर्थी ही है।
२३. समासोक्ति अलङ्कार ६१-जहाँ प्रस्तुत वृत्तान्त के वर्णन से अप्रस्तुत वृत्तान्त की परिस्फूर्ति (व्यञ्जना) हो, वहाँ समासोक्ति अलङ्कार होता है। जैसे देखो यह लाल रंग का चन्द्रमा पूर्व दिशा (इन्द्र की पत्नी) के मुख को चूम रहा है। (यह अनुरागी उपनायक परवनिता के मुख का चुम्बन कर रहा है।) . जहाँ प्रस्तुत वृत्तान्त के वर्णन में समान विशेषणों के कारण अप्रस्तुत वृत्तान्त की भी परिस्फूर्ति (व्यञ्जना) हो, वहाँ समासोक्ति अलंकार होता है। यह समासोक्ति इसलिए कही जाती है कि यहाँ समास अर्थात् संक्षेप से प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत दोनों वृत्तान्तों की उक्ति (वचन) पाई जाती है। इसका उदाहरण 'अयमैन्द्री' इत्यादि पद्याध है। यहाँ प्राची दिशा के आरम्भिक भाग (मुख) से सम्बद्ध चन्द्रमा के उदय के वर्णन में प्रयुक्त 'मुख' शब्द (प्राची के) आरम्भिक भाग तथा मुख में समान रूप से घटित होता है, इसी तरह 'रक्त' शब्द लाल तथा कामुक ( उपनायक) में समान रूप से घटित होता है, साथ ही 'चुम्बति' क्रियापद में यद्यपि उक्त दो शब्दों की भाँति श्लेष नहीं है, तथापि इससे प्रस्तुत अर्थ के संबंध की प्रतीति होने के साथ ही साथ वाच्य तथा लक्ष्य अर्थ समान रूप से प्रतीति हो रहे हैं। इन तत्तत् विशेषणों की समानता 'चन्द्रमाः' (चन्द्रमा) शब्द के पुंल्लिंग तथा 'ऐद्री' शब्द के स्त्रीलिंग के कारण साथ ही 'ऐंद्री' शब्द के 'इन्द्र से संबद्ध स्त्री' इस व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ के कारण उपस्कृत हो रही है तथा उससे चन्द्र-पूर्वदिशा रूप वृत्तान्त से उपनायक-परवनिता प्रेम-रूप वृत्तान्त की प्रतीति हो रही है।