________________
१२२
कुवलयानन्दः
www.w
www
यदेव गम्यं विवक्षितं तस्यैव भङ्गयन्तरेण विवक्षितरूपादपि चारुतरेण केनचिद्रूपान्तरेणाभिधानं पर्यायोक्तम् । उत्तरार्धमुदाहरणम् । अत्र भगवान् वासुदेवः स्वासाधारणरूपेण गम्यः राहुवधूकुच वैवर्ध्य कारकत्वेन रूपान्तरेण स एवाभिहितः ।
यथा था
लोकं पश्यति यस्यांघ्रिः स यस्यांघ्रिं न पश्यति । ताभ्यामप्यपरिच्छेद्या विद्या विश्वगुरोस्तव ||
अत्र गौतमः पतञ्जलिश्व स्वासाधारणरूपाभ्यां गम्यौ रूपान्तराभ्यामभिहितौ ।
हैं । इस संबंध में यह जान लेना आवश्यक होगा कि जयदेव भी प्रस्तुतांकुर अलंकार को नहीं मानते । )
टिप्पणी- चन्द्रालोककार का पर्यायोक्त का लक्षणोदाहरण यों है :कार्याद्यैः प्रस्तुतैरुक्ते पर्यायोक्तं प्रचक्षते ।
तृणान्यं कुरयामास विपक्ष नृपसद्मसु ॥ ( चन्द्रालोक ५.७० )
अलंकार सर्वस्वकार रुय्यक का पर्यायोक्त का लक्षण यों है :
'गम्यस्य भंग्यन्तरेणाभिधानं पर्यायोक्तम् |' ( पृ० १४१ ) मम्मट का पर्यायोक्त का लक्षण यों है :
पर्यायोक्तं विना वाच्यवाचकत्वेन यद्वचः । ( दशम उल्लास ) यहाँ 'च्यवाचकत्वन विना' का ठीक वही भाव है, जो दीक्षित के भंग्यंतराश्रयम्' का ना पड़ता है, वैसे जैसा कि हम देखेंगे अप्पयदीक्षित 'वाच्यवाचकत्वेन विना ' का खंडन करते हैं । मम्मट ने इसका उदाहरण यह दिया है :
--
यं प्रेच्य चिररूढापि निवासप्रीतिरुज्झिता । मदेनैरावणमुखे मानेन हृदये हरेः ॥ चन्द्रिक कार ने इसका लक्षण यों दिया है :
विवक्षित स्वप्रकारातिरिक्तेन चारुतरेण रूपेण व्यंग्यस्याभिधानं पर्यायोक्तम् । ( १०९२) पर्यायोक्त अलंकार वहाँ होता है, जहाँ विवक्षित गम्य अर्थ की प्रतीति के लिए उस विवक्षित अर्थ के भंग्यंतर से अर्थात् विवक्षितरूप से भी अधिक सुन्दर ( चमत्कारयुक्त ) किसी अन्य प्रकार के वाचकादि का प्रयोग किया जाय। इसका उदाहरण ऊपर के पद्य का उत्तरार्ध है । इस उदाहरण में कवि भगवान् विष्णु के प्रति नमस्कार कर रहा है, इस अर्थ की प्रतीति के लिए वासुदेव के असाधारण रूप ( वासुदेवत्व ) का वर्णन किया जा सकता था किंतु उसका वर्णन न कर राहुवधूकुचों के व्यर्थ बना देने रूप अन्य अर्थ द्वारा उन्हीं विष्णु भगवान् का अभिधान किया गया है ।
के
अथवा जैसे
'विश्वगुरु तुम्हारे पास ऐसी विद्या है, जो - जिसका पैर संसार को देखता है (गौतम) तथा जिनके पैर को संसार नहीं देखता ( शेषावतार पतंजलि ) उन दोनों के द्वारा भी अनाकलनीय है. ।
यहाँ गौतम (अक्षपाद ) तथा पतंजलि अपने विशिष्ट रूप वर्णन से गम्य हो सकते