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कुवलयानन्दः
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यत्राप्रस्तुतवृत्तान्तवर्णनं प्रस्तुतवृत्तान्तावगतिपर्यवसायि तत्राप्रस्तुतप्रशंसालङ्कारः । अप्रस्तुतवृत्तान्तवर्णनेन प्रस्तुतावगतिश्च प्रस्तुताप्रस्तुतयोः सम्बन्धे सति भवति । सम्बन्धश्च सारूप्यं सामान्यविशेषभावः कार्यकारणभावो वा सम्भवति । तत्र सामान्यविशेषभावे सामान्याद् विशेषस्य विशेषाद्वा सामान्यस्यावगतौ द्वैविध्यम् | कार्यकारणभावेऽपि कार्यात्कारणस्य कारणाद्वा कार्यस्यावगतौ द्वैविध्यम् | सारूप्ये तु एको भेद इत्यस्याः पश्च प्रकाराः । यदाहु :'कार्ये निमित्ते सामान्ये विशेषे प्रस्तुते सति ।
तदन्यस्य वचस्तुल्ये तुल्यस्येति च पचधा ॥' इति ॥
तत्र सारूप्यनिबन्धनाऽप्रस्तुतप्रशंसोदाहरणं 'एकः कृती' इति । अत्राप्रस्तुतस्य चातकस्य प्रशंसा प्रशंसनीयत्वेन प्रस्तुते तत्सरूपे क्षुद्रेभ्यो याचनान्निवृत्ते Fofo पर्यवस्यति ।
वहाँ अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार होता है । जैसे, पक्षियों में केवल एक चातक ही कृतार्थ है, जो इन्द्र के अतिरिक्त अन्य किसी से याचना नहीं करता ।
( यहाँ चातक के अप्रस्तुतवृत्तान्त के द्वारा क्षुद्र लोगों से याचना न करने वाले अभिमानी याचक का प्रस्तुतवृत्तान्त व्यंजित हो रहा है, अतः अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार है । अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार में व्यंग्यार्थप्रतीति होने पर भी ध्वनित्व नहीं होता, क्योंकि यहाँ प्रस्तुत वृत्तान्तरूप व्यंग्यार्थ अप्रस्तुतवृत्तान्तरूप वाच्यार्थ का ही पोषक होता है, अतः गुणीभूतव्यं यत्व ही होता है । )
जहाँ अप्रस्तुतवृत्तान्तवर्णन प्रस्तुतवृत्तान्त की व्यंजना में पर्यवसित होता है, वहाँ अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार होता है । अप्रस्तुतवृत्तान्त के वर्णन के द्वारा प्रस्तुतवृत्तान्त की प्रतीति तभी हो पाती है, जब कि प्रस्तुत तथा अप्रस्तुत में किसी प्रकार का संबंध हो । यह संबंध या तो सारूप्यसंबंध होता है, या सामान्यविशेषभाव संबंध, या कार्यकारणभाव संबंध | इसमें सामान्यविशेषभाव संबंध होने पर दो प्रकार होंगे, या तो सामान्य ( अप्रस्तुत ) से विशेष ( प्रस्तुत ) की व्यंजना हो, या विशेष ( अप्रस्तुत ) से सामान्य ( प्रस्तुत ) की व्यंजना हो, इसी तरह कार्यकारणभाव संबंध वाली अप्रस्तुतप्रशंसा में भी दो प्रकार होंगे, या तो कार्यरूप अप्रस्तुत से कारणरूप प्रस्तुत की प्रतीति हो, या कारणरूप अप्रस्तुत से कार्यरूप प्रस्तुत की प्रतीति हो । सारूप्य केवल एक ही प्रकार का होता है, इस प्रकार अप्रतुस्तुतप्रशंसा के पाँच प्रकार होते हैं। जैसा कि कहा गया है।
( मम्मट के काव्यप्रकाश से अप्रस्तुत प्रशंसा के पाँचों भेदों का विवरण उपस्थित किया गया है ।) 'कार्य, कारण, सामान्य अथवा विशेष में से किसी एक के प्रस्तुत होने पर उससे भिन्न कारण, कार्य विशेष अथवा सामान्य में से किसी एक अप्रस्तुत के वाच्यरूप में वर्णित करने पर अथवा समान धर्म वाले ( तुल्य) प्रस्तुत के होने पर तुल्य अप्रस्तुत का वायरूप में कथन होने पर अप्रस्तुत प्रशंसा पाँच तरह की होती है ।'
इन पाँच भेदों में से सारूप्यनिबंधना अप्रस्तुतप्रशंसा का उदाहरण 'एकः कृती' इत्यादि पद्यार्ध है। इसमें अप्रस्तुत चातक का वर्णन ( प्रशंसा ) किया गया है । यहाँ अप्रस्तुत चातक वृत्तान्त वाच्य है, वह सारूप्य के कारण उसके समानरूप वाले ऐसे मानी याचक
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वृत्तान्त की व्यंजना कराता है, जो तुच्छ व्यक्तियों से याचना नहीं करता ।