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निदर्शनालङ्कारः
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एवं गृहमेधी समागतं सन्तमुचितपूजया संभावयेदिति । अतः संभवति बोधन. संबन्ध इति ॥ ५५-५६ ।।
गृहागत सजन का आदर सत्कार करना चाहिए। इस प्रकार यहाँ बोधनसंबंध संभाव्य है।
टिप्पणी-इस संबंध में एक विचार हो सकता है कि निदर्शना के इस तीसरे भेद को उत्प्रेक्षा से भिन्न मानना ठीक नहीं। हम देखते हैं कि 'नश्येद्राजविरोधी' आदि उदाहरण में अन्धकार में बोधनकिया की संभावना की गई है, जिसका निमित्त 'नाश' है । ठीक इसी तरह 'लिम्पतीव तमोगानि' में उत्प्रेक्षा है। दोनों में कोई खास भेद नहीं जान पड़ता। दोनों में यह भेद अवश्य है कि वहाँ वह वाच्या है, यहाँ गम्या। हम देखते हैं कि 'उन्नतं पदमवाप्य यो लघु]लयैव स पतेदिति ध्रुवम्' में ध्रुवं इस उत्प्रेक्षाव्यंजक शब्द का प्रयोग हुआ ही है । अतः निदर्शभा केवल असंभववस्तुसंबंधवाली ( पदार्थ तथा वाक्यार्थरूपा) ही होती है। इसमें एक धर्मी में अन्य धर्मी का तादात्म्या. रोप तथा उसके धर्मों का आरोप इस प्रकार दो ही तरह की होती है। इस बात का संकेत गंगाधर वाजपेयी ने रसिकरंजनी में किया है तथा इसे अपने गुरु का मत बताया है। __ 'अत्रेदं चिन्त्यम् । तृतीया निदर्शनानातिरिक्ता अभ्युपगन्तव्या। उत्प्रेक्षयैव चारिता
र्थ्यात् । तथा हि-'नश्येद्राजविरोधी'त्यादौ तमसि बोधनमुत्प्रेचयते नाशेन निमित्तेन 'लिम्पतीव तमोऽगानि' इत्यत्रेव । न हि ततोऽत्र मात्रयापि वैलक्षण्यमीक्षामहे । इयांस्तु विशेषः । यत्तत्र सम्भावनाद्योतकेवादिशब्दोपादानाद्वाच्या सा । इह तदनुपादानाद्गम्येति । अत एव 'उन्नतं पदमवाप्य यो लघुर्हेलयैव स पतेदिति ध्रुवम् ।' इत्युदाहरणान्तरे ध्रुवमित्युत्प्रेक्षाव्यञ्जकशब्दोपादानम् । एवं चासम्भवद्वस्तुसम्बन्धनिबन्धनमेकमेव निदर्शनम् । तच धर्मिणि धर्म्यन्तरतादात्म्यारोपतद्धर्मारोपाभ्यां द्विविधमित्येव युक्तमित्यस्मद्देशिकपरि. शीलितः पन्थाः। (रसिकरंजनी पृ० ९७ )
मम्मट ने दीक्षित की पदार्थनिदर्शना तथा वाक्यार्थनिदर्शना में असंभवद्वस्तुसंबंध माना है, तभी तो उनकी निदर्शना की परिभाषा यों है :-'निदर्शना, अभवन् वस्तुसंबन्ध उपमापरि• कल्पक' (१०.९७ ) संभवद्वस्तुसंबंधवाली निदर्शना का लक्षण मम्मट ने यों दिया है :
'स्वस्वहेत्वन्वयस्योक्तिः क्रिययैव च साऽपरा' (१०.९८) रुय्यक ने मम्मट की तरह दो लक्षण न देकर एक ही लक्षण में दोनों का समावेश कर दिया है।
'संभवतासंभवता वा वस्तुसंबन्धेन गम्यमानं प्रतिबिम्बकरणं निदर्शना। (पृ० ९७) रुय्यक का यह लक्षण उद्भट के लक्षण के अनुरूप है :
अभवन् वस्तुसंबन्धो भवन्वा यत्र कल्पयेत् ।
उपमानोपमेयत्वं कथ्यते सा निदर्शना ॥ ( काव्यालंकारसारसंग्रह ५. १०) मम्मट तथा रुय्यक ने इसे मालारूपा भी माना है । मम्मट ने इसका उदाहरण 'दोभ्यां तिती. पति' इत्यादि टिप्पणी में पूर्वोदाहृत पद्य दिया है। दीक्षित ने भी वाक्यार्थवृत्तिनिदर्शना के प्रसंग में जो उदाहरण दिया है वह ('अरण्यरुदितं कृतं' इत्यादि ) रुय्यक के द्वारा मालारूपा निदर्शना के ही प्रसंग में उद्धृत किया गया है। फलतः दीक्षित मी मालारूपा निदर्शना का संकेत कर रहे हैं।