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अतिशयोक्त्यलबारः
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फलोत्प्रेक्षायां यथा
रवितप्तो गजः पद्मांस्तद्गृह्यान्बाधितुं ध्रुवम् ।
सरो विशति न स्नातुं गजस्नानं हि निष्फलम् ।। अत्र गजस्य सरःप्रवेशं प्रति फले स्नाने फलत्वमपहुत्य पद्मबाधने तन्निवेशितम् । अलमनया प्रसक्तानुप्रसक्त्या, प्रकृतमनुसरामः ।। ३७ ॥
भेदकातिशयोक्तिस्तु तस्यैवान्यत्ववर्णनम् ।
अन्यदेवास्य गाम्भीर्यमन्यद्धयं महीपतेः ॥ ३८ ॥ अत्र लोकप्रसिद्धगाम्भीर्याद्यभेदेऽपि भेदो वर्णितः। यथा वा
अन्येयं रूपसंपत्तिरन्या वैदग्ध्यधोरणी। नैषा नलिनपत्राक्षी सृष्टिः साधारणी विधेः ॥ ३८ ॥ संबन्धातिशयोक्तिः स्यादयोगे योगकल्पनम् ।
सौधाग्राणि पुरस्यास्य स्पृशन्ति विधुमण्डलम् ॥ ३६॥ . 'हाथी सरोवर में इसलिए घुसता है कि वह उसे तपाने (परेशान करने ) वाले सूर्य के पक्ष वाले (मित्र) कमलों को परेशान करना चाहता है, वह इसलिए सरोवर में नहीं घुसता कि नहाना चाहता है, क्योंकि हाथी का स्नान तो निष्फल है।'
यहाँ 'हाथी सरोवर में नहाने के लिए घुसता है' सरःप्रवेश. क्रिया के इस वास्तविक फल का गोपन कर 'कमलों को परेशान करना' उसका फल सम्भावित किया गया है। (इस उदाहरण में प्रत्यनीक अलंकार भी है।) इस प्रसंगवश उपस्थित प्रकरण (उत्प्रेक्षा अलंकार के विषय ) का अधिक विचार करना व्यर्थ है, प्रकृत प्रकरण (अतिशयोकि) का अनुसरण करते हैं।
(भेदकातिशयोक्ति) ३४-जहां उसी (विषय ही) को अन्य के रूप में वर्णित किया जाय, वहां भी भेद. कातिशयोक्ति होती है। जैसे, इस राजा का गांभीर्य दूसरे ही ढंग का है, इसका धैर्य भी अन्य प्रकार का है। । यहाँ राजा का गाम्भीर्य तथा धैर्य प्रसिद्ध गांभीर्य तथा धैर्य से भिन्न नहीं है, फिर भी कवि ने उसके अन्यत्व की कल्पना की है। इस प्रकार यहाँ गांभीर्यादि के अभिन्न होने पर भी भिन्नता बताई गई है। (इसी को प्राचीन आलंकारिकों ने अभेदे भेदरूपा अति. शयोक्ति कहा है।) इसका अन्य उदाहरण यह है :__ यह कमल के समान आँखों वाली सुन्दरी ब्रह्मा की साधारण सृष्टि नहीं है । इसकी रूपशोभा कुछ दूसरी ही है, इसकी चातुर्य परिपाटी (चतुरता) भी दूसरे ही प्रकार की है।
यहाँ सुन्दरी की रूप सम्पत्ति तथा चातुरी का अन्यत्ववर्णन किया गया है, अतः भेदकातिशयोक्ति अलंकार है।
३९-जहाँ असम्बन्ध में सम्बन्ध का वर्णन किया जाय, वहाँ सम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार होता है, जैसे, इस नगर के महलों के अग्रभाग चन्द्रमा के मण्डल को छूते हैं। (यहाँ सौधान तथा चन्द्रमण्डल के असंबंध में भी संबंध का वर्णन किया गया है।) ४ कुव०