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अतिशयोक्त्यलङ्कारः
योगेऽप्ययोगोऽसंबन्धातिशयोक्तिरितीर्यते ।
त्वयि दातरि राजेन्द्र ! स्वर्द्धमान्नाद्रियामहे ॥ ४० ॥
अत्र स्वमेच्यादरसंबन्धेऽपि तदसंबन्धो वर्णित इत्यसंबन्धातिशयोक्तिः ।
यथा वा
अनयोरनवद्याङ्गि ! स्तनयोजृम्भमाणयोः । अवकाशो न पर्याप्तस्तव बाहुलतान्तरे ॥ ४० ॥ अक्रमातिशयोक्तिः स्यात् सहत्वे हेतुकार्ययोः । आलिङ्गन्ति समं देव ! ज्यां शराश्च पराश्च ते ॥ ४१ ॥
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● मौर्या यदा शरसंधानं कृतं तदानीमेव शत्रवः क्षितौ पतन्तीति हेतुकार्ययोः सहत्वं वर्णितम् ।
यथा वा
मुञ्चति मुञ्चति कोशं भजति च भजति प्रकम्पमरिवर्गः । हम्मीर वीरखड्गे त्यजति त्यजति क्षमामाशु ॥
( संबंधातिशयोक्ति )
४०—जहाँ सम्बन्ध (योग) होने पर भी असम्बन्ध की उक्ति पाई जाय, वहाँ असम्बन्धातिशयोक्ति होती है । ( यह अतिशयोक्ति पहले वाली अतिशयोक्ति की उलटी है। इसे ही अन्य आलंकारिकों ने सम्बन्धरूपा अतिशयोक्ति माना है ।) जैसे, कोई कवि किसी राजा की दानशीलता की प्रशंसा करता कहता है- हे राजन्, तुम जैसे दानी के होने पर हम कल्पवृक्षों का भी आदर नहीं करते ।
यहाँ याचक लोगों का स्वर्दुर्मो ( कल्पवृक्षों) के प्रति आदर पाया ही जाया है, तथापि इस सम्बन्ध में असम्बन्ध ( आदर न होने ) का वर्णन किया गया है, अतः यह असम्बन्धातिशयोक्ति का उदाहरण है ।
असम्बन्धातिशयोक्ति का अन्य उदाहरण निम्न है :
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कोई कवि (अथवा नायक ) किसी सुन्दरी के स्तनविस्तार का वर्णन कर रहा है: हे अनिन्द्य अंगवाली सुन्दरी, तेरे बढ़ते हुए स्तनों के लिए बाँहों के बीच पर्याप्त अवकाश नहीं है ।
यहाँ बाहुलताओं के बीच में स्तनों के लिए पर्याप्त अवकाश है, किन्तु फिर भी कवि ने अवकाशाभाव बताया है, अतः संबंध में असंबंध का वर्णन पाया जाता है। ( क्रमातिशयोक्ति )
४१ – जहाँ कारण तथा कार्य दोनों साथ-साथ हों, वहाँ अक्रमातिशयोक्ति होती है, जैसे (कोई कवि किसी राजा की वीरता की प्रशंसा करते कहता है) हे राजन्, तुम्हारे बाण और तुम्हारे शत्रु दोनों साथ-साथ ही ज्या (प्रत्यचा; पृथिवी) का आलिंगन करते हैं। प्रत्यचा में जब वाणसंधान किया जाय ( कारण ) तभी शत्रु पृथिवी पर गिरेंगे ( कार्य ) इस प्रकार कारण का कार्य से पहले होना आवश्यक है, किन्तु यहाँ जिस समय प्रत्यचा में वागसंधान किया गया ठीक उसी समय शत्रु राजा जमीन पर गिर पड़े - इस वर्णन में कारण तथा कार्य का सहभाव निर्दिष्ट हैं, अतः यहाँ अक्रमातिशयोक्ति अलङ्कार है । अथवा जैसे
कोई कत्रि राजा हम्मीर की वीरता का वर्णन कर रहा है । जब वीर हम्मीर का खडग