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उत्प्रेक्षालङ्कारः
धूमस्तोमं तमः शङ्के कोकीविरहशुष्मणाम् । लिम्पतीव तमोऽङ्गानि वर्षतीवाञ्जनं नमः ॥ ३३ ॥ रक्तौ तवाङ्ग्री मृदुलो भुवि विक्षेपणाद्धृवम् । त्वन्मुखाभेच्छया नूनं पद्मैवैरायते शशी ॥ ३४ ॥ मध्यः किं कुचयोधृत्यै बद्धः कनकदामभिः ।
प्रायोऽब्जं त्वत्पदेनैक्यं प्राप्तुं तोये तपस्यति ॥ ३५॥ अन्यधर्मसंबन्धनिमित्तेनान्यस्यान्यतादात्म्यसंभावनमुत्प्रेक्षा । सा च वस्तु. हेतु-फलात्मतागोचरत्वेन त्रिविधा । अत्र वस्तुनः कस्यचिद्वस्त्वन्तरतादात्म्य. उक्तविषया तथा अनुक्तविषया-दो तरह की होती है। शेष दो (हेतूत्प्रेक्षा तथा फलोत्प्रेक्षा) के सिद्धविषया तथा असिद्धविषया ये दो दो भेद होते हैं। (इन्हीं के उदाहरण क्रमशः
(१) सायंकालीन अन्धकार मानो चक्रवाकी के विरहरूपी अग्नि का धुओं है, (उक्तविषया वस्तूत्प्रेक्षा) - (२) रात्रि का अन्धकार क्या है, मानो अँधेरा अंगों को लीप रहा हो, मानो आकाश काजल बरसा रहा हो । (अनुक्तविषया वस्तूत्प्रेक्षा)
(३) हे सुन्दरि, जमीन पर चलने के कारण तेरे कोमल चरण रक्त हो गये हैं। (सिद्धविषया हेतूत्प्रेक्षा)
(यहाँ सुन्दरी के चरणों का रक्तत्व स्वतःसिद्ध है, कवि ने इसका हेतु भूतल पर चलना सम्भावित किया है।)
(४) हे सुन्दरि, यह चन्द्रमा तुम्हारे मुख की कांति को प्राप्त करने की इच्छा से उस कांतिको धारण करनेवाले कमलों से वैर का आचरण कर रहा है। (असिद्धविषया हेतूत्प्रेक्षा)
(यहाँ चन्द्रमा के उदय पर कमल बन्द हो जाते हैं, इस तथ्य में कवि ने यह संभावना की है कि चन्द्रमा कमलों से वैर करता है तथा इस हेतुकी संभावना स्वतः सिद्ध नहीं है।)
(५) हे सुन्दरि, क्या स्तनों को धारण करने के लिए तुम्हारा मध्यभाग सोने की जंजीरों (त्रिवलियों) से बाँध दिया गया है। (सिद्धविषया फलोत्प्रेक्षा)
(यहाँ मध्यभाग में त्रिवलि की रचना इसलिए की गई है कि स्तनों को रोका जा सके, यह फल की सम्भावना है।)
(६) हे सुन्दरि, ये कमल जल में इसलिए तप किया करते हैं कि तुम्हारे चरणों के साथ अद्वैतता प्राप्त कर सकें। (असिद्धविषया फलोत्प्रेक्षा)
(कमल स्वाभाविक रूप से जल में रहते हैं, पर कवि ने उस पर सुन्दरी के चरणों का ऐक्य प्राप्त करने की कामना से जलमग्न हो तपस्या करने की संभावना की है।)
टिप्पणी-यहाँ इस बात की प्रतीति होती है कि कमल वैसे ही जलमग्न हो तपस्या कर रहा है, जैसे कोई तपस्वी उच्चपद की प्राप्ति करने के लिए-ईश्वर के ताप्य के लिए-तपस्या करता है। इस पंक्ति में 'अब्जं से किसी एक कमल का तात्पर्य न होकर समस्त कमल-जाति (Lotus as such, Lotus as a class ) अभीष्ट है।
जहाँ विषयी (अन्य) के धर्म के आधार पर विषयी के अन्यतादात्म्य की संभावना हो, वहाँ उत्प्रेक्षा होती है। यह उत्प्रेक्षा तीन प्रकार की होती है:-वस्तूत्प्रेक्षा, हेतूत्प्रेक्षा तथा फलोत्प्रेक्षा। इनमें जहाँ किसी एक वस्तु (उपमेय, प्रकृत) की किसी दूसरी