________________
अपह्नत्यलङ्कारः
भ्रान्तापह्नुतिरन्यस्य शङ्कायां भ्रान्तिवारणे । तापं करोति सोत्कम्पं, ज्वरः किं १ न, सखि ! स्मरः ॥ २६ ॥
अत्र तापं करोतीति स्मरवृत्तान्ते कथिते तस्य ज्वरसाधारण्याजुबुद्धया सख्या 'ज्वरः किम्' इति पृष्टे, 'न, सखि ! स्मरः' इति तत्त्वोक्त्या भ्रान्तिवारणं कृतम् । यथा वानागरिक ! समधिकोन्नतिरिह महिषः कोऽयमुभयतः पुच्छः ।
नहि नहि करिकलभोऽयं शुण्डादण्डोऽयमस्य न तु पुच्छम् ।। - इदं संभवद्भ्रान्तिपूर्विकायां भ्रान्तापहुतावुदाहरणम् । कल्पितभ्रान्तिपूर्वा यथा
जटा नेयं वेणीकृतकचकलापो न गरलं
गले कस्तूरीयं शिरसि शशिलेखा न कुसुमम् । २९-जहाँ किसी विशेष परिस्थिति में किसी व्यक्ति को अन्य वस्तु की शंका हो तथा उस शंका को हटाने के लिए उसकी भ्रांति का वारण किया जाय, वहाँ भ्रान्तापह्नति होती है। जैसे (वह) मेरे अन्दर कम्प के साथ ताप कर रहा है। क्या ज्वर (ताप कर रहा है)? नहीं, सखि, कामदेव (ताप कर रहा है)। __ यहाँ तप कर रहा है' यह कामदेवजनित पीडा का वर्णन किसी विरहिणी के द्वारा किया जा रहा है, इसे सुनकर भोली सखी तापका कारण ज्वर समझ बैठती है क्योंकि यह ज्वर की स्थिति में भी पाया जाता है, इसलिए वह 'क्या ज्वर ?' ऐसा प्रश्न पूछ बैठती है, इसे सुनकर विरहिणी उसकी भ्रांति का निवारण करती हुई तथ्य का प्रकाशन करती कहती है 'नहीं सखि, कामदेव' । इस प्रकार यहाँ तत्वोक्ति के द्वारा भ्रांति का वारण करने के कारण भ्रांतापह्नति अलंकार है।
इसी का दूसरा उदाहरण निम्न है:
कोई गँवार जिसने कभी हाथी नहीं देखा है हाथी को देखकर किसी नागरिक से कहता है-'हे नागरिक, यह भैंसा दूसरे भैंसों से अधिक ऊँचा है, पर इसके दोनों ओर कौन सी पूंछ है ?' इसे सुनकर नागरिक उत्तर देता है-'नहीं यह भैंसा नहीं है, यह तो हाथी का बच्चा है, यह इसकी सूंड है, पूंछ नहीं है।' - पहले उदाहरण तथा इस उदाहरण में यह भेद है कि उसमें संदेहरूप भ्रांति के विषय ज्वर का निषेध किया गया है, यहाँ देहाती को 'महिषत्व' का निश्चय हो चुका है अतः यहाँ निश्चित भ्रांति का निवारण कर तत्वोक्ति (करिकलभत्व) की प्रतिष्ठापना की गई है। . यह भ्रांति संदेहगर्भा या निश्चित ही नहीं होती, कविकल्पित भी हो सकती है, जैसे निम्न उदाहरण में कविकल्पित भ्रांति का निवारण पाया जाता है:
कोई विरहिणी कामदेव से कह रही है। अरे कामदेव, तू मुझे क्यों पीड़ित कर रहा है। क्या तू मेरे ऊपर इसलिए प्रहार कर रहा है कि तू मुझे अपना शत्र महादेव समझ बैठा है । यदि ऐसा है, तो यह तेरी भ्रांति है। अरे मेरे मस्तक पर यह जटा नहीं है, बेणी के बालों का समूह है, यह मेरे गले में जहर की नीलिमा नहीं, कस्तूरी है। मेरे सिर