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कुवलयानन्दः
अत्रारोप्यमाण आतरः सौमित्रिमैत्रीरूपतापत्त्या गुहोपकारलक्षणकार्योपयोगी न स्वात्मना, गुहस्य रघुनाथप्रसादेकार्थित्वेन वेतनार्थित्वाभावात् ।।२१।।
७ उल्लेखालङ्कारः बहुभिर्बहुधोल्लेखादेकस्योल्लेख इष्यते । स्त्रीभिः कामोऽर्थिभिः स्वर्द्धः कालः शत्रुभिरैक्षि सः ॥ २२ ॥ यत्र नानाविधधर्मयोग्येकं वस्तु तत्तद्धर्मयोगरूपनिमित्तभेदेनानेकेन ग्रही. त्रानेकधोलिख्यते तत्रोल्लेखः । अनेकधोल्लेखने रुच्यर्थित्वभयादिकं यथार्ह प्रयोजकम् । रुचिरभिरतिः । अर्थित्वं लिप्सा | 'स्त्रीभिः' इत्याधुदाहरणम् अत्रैक एव राजा सौन्दर्यवितरणपराक्रमशालीति कृत्वा स्त्रीभिरर्थिभिः प्रत्यर्थिभिश्च रुच्यथित्वभयैः कामकल्पतरुकालरूपो दृष्टः । यथा वा
हार्थों के अन्तराल (व्याम ) में ग्रहण करने योग्य हैं-कुतूहल से विकसित नेत्रों से बड़ी देर तक अनुगत होकर चित्रकूट पर्वत की ओर रवाना हो गये।
इस उदाहरण में आरोप्यमाग आतर है, आरोपित सौमित्रिमैत्री। अतः सौमित्रिमैत्री पर आतर का आरोप किया गया है, किंतु किराया (आतर ) सौमित्रिमैत्री के स्वरूप को धारण करके ही केवट के उपकाररूप कार्य में उपयोगी हो सकता है, क्योंकि केवट तो केवल रामचन्द्र की कृपा का ही इच्छुक था, किराये का इच्छुक नहीं। अतः आतर (विषयी) के सौमित्रिमैत्री (विषय) रूप में परिणत होकर प्रकृतक्रियोपयोगी होने के कारण यहाँ परिणाम अलंकार है।
७ उल्लेख अलङ्कार __२२-जहाँ एक ही वस्तु का अनेक व्यक्तियों के संबन्ध में भिन्न-भिन्न प्रकार से वर्णन किया जाय, वहाँ उल्लेख अलंकार होता है । जैसे, उस राजा को त्रियों ने कामदेव के रूप में, याचकों ने कल्पवृक्ष के रूप में तथा शत्रुओं ने काल के रूप में देखा।
यहाँ एक ही विषय (उपमेय) अर्थात् राजा तत्तत् व्यक्ति स्यादि के संबंध में अनेक प्रकार से वर्णित किया गया है, अतः उल्लेख अलंकार है।
जहाँ नाना प्रकार के धर्मों से युक्त कोई एक पदार्थ (वर्ण्य विषय) तत्तत् धर्म के योग के कारण अनेक व्यक्तियों के संबंध में अनेक प्रकार से वर्णित किया जाय, वहाँ उल्लेख अलंकार होता है। अनेक प्रकार के इस उल्लेख में प्रेम (रुचि), धनेच्छा (अर्थित्व) तथा भय आदि तत्तत् निमित्त तत्तत् कामदेवादि विषयी के साथ प्रयोजक हैं । रुचि शब्द का अर्थ है अभिरति । अर्थित्व शब्द का अर्थ है लिप्सा। उपर्युक्त कारिका में 'स्त्रीभिः' इत्यादि कारिकार्ध उल्लेख अलंकार का उदाहरण है। यहाँ एक ही विषय (राजा) सौन्दर्य, वितरणशीलता ( दानशीलता) तथा पराक्रम तीनों धर्मों से युक्त है, इसलिए स्त्रियों को अभिरुचि के कारण वह कामदेव दिखाई दिया, याचकों को लिप्सा के कारण कल्पवृत्त, तथा शत्रुओं को भय के कारण यमराज । इस प्रकार यहाँ एक ही वस्तु का भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के संबन्ध से अनेकशः उल्लेख होने के कारण उल्लेख अलंकार है । अथवा, जैसे इस दूसरे उदाहरण में