________________
कुवलयानन्दः
२२ exaaaaaaaaaaa
प रिणामालङ्कारः
परिणामः क्रियार्थश्चेद्विषयी विषयात्मना ।
प्रसन्नेन दृगब्जेन वीक्षते मदिरेक्षणा ॥ २१ ॥ ५. केवलरिलष्टपरम्परितः
अलौकिकमहालोकप्रकाशितजगत्त्रयः।
स्तूयते देव, सद्वंशमुकारत्नं न कैर्भवान् ॥ यहां 'सद्वंशमुक्तारत्न' में केवलश्लिष्टपरम्परित रूपक है। यहां सद्वंश के दो अर्थ हैं एक अच्छा बाँस, दूसरा उच्च कुल । ६. मालाश्लिष्टपरम्परितः
विद्वन्मानसहंसवैरिकमलासंकोचदीप्तद्यते, दुर्गामार्गणनीललोहित समित्स्वीकारवैश्वानर । सत्यप्रीतिविधानदक्ष विजयप्राग्भावभीम प्रभो
साम्राज्यं वरवीर वत्सरशतं वैरिश्चमुचैः क्रियाः॥ ___ यहां राजा (विषय ) पर हंसादि तत्तत् विषयी पदार्थों का आरोप पाया जाता है, इसमें 'मानस (मन) ही मानस (मानसरोवर ) है। इस प्रकार तत्तत् पदों में श्लेष का आधार पाया जाता है।
७. अश्लिष्टकेवलपरम्परितः'चतुर्दशलोकवनिकन्दः' ( इस वाक्य में राजा पर कन्द का तथा लोक पर 'लता' का आरोप किया गया है, अतः यह परम्परित है, यह शुद्ध तथा अश्लिष्ट दोनों है । ८. अश्लिष्टमालापरम्परितः
पर्यको राजलचम्या हरितमणिमयः पौरुषाब्धेस्तरंगो भग्रप्रत्यर्थिवंशोल्वणविजयकरिस्त्यानदानाम्बुपट्टः । संग्रामत्रासताम्यन्मुरलपतियशोहंसनीलाम्बुवाहः
खड्गः चमासौविदल्लः समिति विजयते मालवाखण्डलस्य ॥ यह मालारूपक का उदाहरण है यहां मालवनरेश के खडग पर राजलक्ष्मीपर्यकत्व, पौरुषाधितरङ्गत्व, विजयहस्तिदानाम्बुपट्टत्व, मुरलराज के यशरूपी हंस के लिए बादल इस प्रकार व्यशोहंसमेघत्व, तथा पृथिवी के कंचुकित्व का आरोप पाया जाता है, अतः एक विषय पर अनेक विषयी का आरोप है।
६ परिणाम अलङ्कार' २१-'जहां विषयी (उपमान) विषय के स्वरूप को ग्रहण कर किसी प्रकृत कार्य का उपयोगी हो सके, वहां परिणाम अलंकार होता है, जैसे, मादकनेत्रों वाली नायिका प्रसन्न नेत्रकमलों से देखती है। ___ यहां यद्यपि 'दृक' (विषय) पर 'अब्ज' (विषयी) का आरोप कर दिया गया है, तथा 'प्रसन्न' रूप सामान्यधर्म का प्रयोग भी किया गया है, किंतु 'वीक्षण' क्रिया (देखना) कमल के द्वारा नहीं हो सकती, अतः प्रकृत कार्य (वीक्षण) में विषयी (कमल) तभी उपयोगी हो सकता है, जब वह स्वयं विषय (नेत्र) के रूप में परिणत हो । इसलिए यहां परिणाम अलर है।