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कुवलयानन्दः paraxxxamaramanarmarriornmaraxaraww.ameram
अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहुरपरो हरिः
अभाललोचनः शंभुभेगवान्बादरायणः ।। अत्र हर्यादौ 'अपर' इति विशेषणात्रिष्वपि ताद्रूप्यमात्रविवक्षा विभाविता, चतुर्वदनत्वादिवैकल्यं चोक्तमिति न्यूनताद्रूप्यरूपकम् । इदं विशेषोक्त्युदाहरणमिति वामनमतम् । यदाह ( काव्या० सू० ४।३।२३ )-'एकगुणहानिकल्पनायां गुणसाम्यदाढर्थ विशेषोक्तिः' इति ।
किमसुभिर्लपितैर्जड ! मन्यसे मयि निमज्जतु भीमसुतामनः । मम किल प्रतिमाह तदर्थिकां नलमुखेन्दुपरां विबुधः स्मरः ।। (नै० ४।५२) अत्र दमयन्तीकृतचन्द्रोपालम्भे प्रसिद्धचन्द्रो न निर्याणकालिकमनः प्रवेशन्यूनताप्यरूपक का उदाहरण निम्न है:'भगवान् व्यास बिना चार मुंह वाले ब्रह्मा, दो हाथ वाले दूसरे विष्णु, तथा बिना ललाटने वाले शिव हैं।' ____ यहाँ न्यास विषय (उपमेय) हैं, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव विषयी (उपमान)। इस उक्ति में विष्णु आदि के साथ 'अपरः' (दूसरे) यह विशेषण दिया गया है, जिससे इनके साथ विषय की केवल तादृप्यविवक्षा कवि को अभीष्ट है। इस पद्य में कवि ने तत्तत् विषयी के साथ चतुर्वदनरहितता आदि न्यूनता का संकेत किया है, अतः यह न्यूनता
द्रुप्यरूपक का उदाहरण है । काम्यालंकारसूत्रकार वामन के मतानुसार इस पद्य में विशेषोक्ति अलंकार पाया जाता है। जैसा कि काव्यालङ्कारसूत्र (सू० ४३३२३) में कहा गया हैः-जहाँ किसी एक गुण की हानि की कल्पना में (शेष गुणों के आधार पर) दो वस्तुओं के गुणसाभ्य को पुष्ट किया जाय, वहाँ विशेषोक्ति होती है। (अप्पय दीक्षित को वामन का मत सम्मत नहीं जान पड़ता है। वामन के मतानुसार यहाँ विशेषोक्ति इसलिए है कि तत्तत् विषयी का एक गुण चतुर्वदनत्वादि विषय में नहीं पाया जाता, किन्तु फिर भी अन्य गुणों के आधार पर ब्रह्मा, विष्णु, तथा शिव के साथ व्यास की समानता को दृढ़ किया गया है । अप्पय दीक्षित इसे रूपक ही मानते हैं, क्योंकि यहाँ जिस न्यूनता का वर्णन किया गया है, वह रूपक के ढंग पर चमत्कारोत्पत्ति कर रही है, अतः इसे अलग से अलङ्गार (विशेषोक्ति) मानना ठीक नहीं।) ।
अब प्रसंगप्राप्त अधिकताद्रप्यरूपक का उदाहरण देते हैं:
यह पद्य श्रीहर्ष के नैषधीयचरित के चतुर्थ सर्ग से उद्धत है। दमयन्ती चन्द्रमा की भर्त्सना करती कह रही है:-हे मूर्ख (शीतल, जड़) चन्द्रमा, तू मुझे क्यों सता रहा है क्या तू यह समझ रहा है कि दमयन्ती के प्राणों के नष्ट होने से इसकामन तुझ में जाकर लीन हो जायेगा। (एक वैदिक उक्ति के अनुसार मरने वाले व्यक्ति का मन चन्द्रमा में जाकर लीन होता है।) पर तू मूर्ख जो ठहरा, तुझे उस वैदिक मंत्र के वास्तविक अर्थ का पता क्या ? अरे मुझे तो पण्डित कामदेव ने उस वैदिक मंत्र (श्रुति) का वास्तविक अर्थ कुछ और ही बताया है, उसकी व्याख्या के अनुसार उस मंत्र का अर्थ तुझसे संबद्ध न होकर नल के मुखरूपी चन्द्रमा से सम्बद्ध है। अतः मेरे मरने पर मेरा मन तुझमें लीन होगा, यह न समझना, वह नल के मुखचन्द्र में लीन होगा।
यहाँ दमयन्ती के द्वारा चन्द्रमा की भर्त्सना की जा रही है। इस चन्द्रोपालम्भमय उक्ति में बताया गया है कि मरने के समय चन्द्रमा में मन के प्रवेश करने से सम्बद्ध वैदिक