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[८ ] (६) यह आधिक्य वर्णन यथार्थ न होकर कवि प्रौढोक्तिनिबद्ध होता है। भरूप :-इसके लिए दे० भूमिका पृ० २८ २९ ।
(३५) अन्योन्य (१) अन्योन्य में भी सदा दो पदार्थों का वर्णन पाया जाता है। (२) ये दो पदार्थ एक दूसरे के उपस्कारक होते है। (३) इसमें प्रथम पदार्थ द्वितीय का उपकारक होता है, द्वितीय प्रथम का। (४) अन्योन्य में दोनों पदार्थ प्रकृत होते हैं। (५) अन्योम्य का प्रयोग एकवाक्यगत भी हो सकता है, द्विवाक्यगत भी। (६) अन्योन्य में जिस गुण या क्रिया रूप उपकार का वर्णन किया जाता है, वह दोनों
पदार्थों का उत्कर्षाधायक हो।
(३६) कारणमाला (१) यह शृङ्खलामूलक अलंकार है, जिसमें पूर्व-पूर्व या तो उत्तरोत्तर का कारण होता है या कार्थ ।
(२) यह शृखला जितनी लम्बी होगी उतनी ही चमत्कारावह होगी।
(३) चमत्कार को बनाये रखने के लिए कवि को पूर्व पूर्व शब्दों के उत्तरोत्तर प्रयोग में पर्यायवाची शब्द का प्रयोग न कर उसी शब्द का प्रयोग करना चाहिए, साथ ही सभी छोटे वाक्यों की व्याकरणिक संघटना एक सी होनी चाहिए जैसे 'जितेन्द्रियत्वं विनयस्य कारणं गुणप्रकर्षों विनयादवाप्यते' में दूसरे वाक्य की संघटना यदि 'विनयः गुणप्रकर्षस्य कारण होती तो विशेष चमत्कार होता।
(३७) एकावली एकावली:(१) यह शृङ्खलामूलक अलंकार है । इसमें विशेषणों की शृङ्गला पाई जाती है। (२) पूर्व-पूर्व पद या तो उत्तरोत्तर पद के विशेषण हों या विशेष्य हों। (३) एकावली के दो प्रकार होते हैं पूर्व-पूर्व पद के विशेषणविशेष्यमाव की स्थापना या
अपोहन । इसी को दीक्षित ने ग्रहगरीति तथा मुक्तरीति कहा है। (४) विशेषणों का लक्ष्य विशेष्य की उत्कृष्टता बताना हो। (५) इस अलंकार का वास्तविक चमत्कार शृङ्खला में ही होता है।
एकावली, कारणमाला, मालादीपक :-ये तीनों शृंखलामूलक अलंकार हैं। तीनों में पूर्व पूर्व पद का उत्तरोत्तर पद से संबंध स्थापित किया जाता है, किन्तु भेद यह है कि एकावली में यह संबन्ध विशेषण-विशेष्यभाव का होता है, कारणमाला में कार्यकारणभाव का, तो मालादीपक में पूर्व-पूर्व पदार्थ उत्तरोत्तर पदार्थ के धर्म का विधान करता है। साथ ही एकावली तथा कारणमाला का वास्तविक चमत्कार केवल शृंखला का होता है, जब कि मालादीपक में यह भी चमत्कार पाया जाता है कि यहाँ 'धर्म का एक बार प्रयोग होता है।' यही कारण है कि दीक्षित ने यहाँ एकावली तथा दीपक का योग माना है।