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[१५] (२) संकर के तीन भेद होते है :-( अ ) अंगांगिभाव संकर, (आ) संदेह संकर, (इ) एकवाचकानुप्रवेश संकर।।
(३) अंगांगिभाव संकर में एक या अधिक अलंकार अन्य किसी अंगी अलंकार के अंग होते हैं । इस तरह इनमें परस्पर उपकार्योपकारकभाव या अंगांगिभाव ठीक वैसे ही होता है, जैसे तन्तु पट के अङ्ग होते हैं। यह अङ्गांगिमाव दो या अधिक अर्थालंकारों का होता है। ( अनेक शब्दालंकारों में या:"शब्दालंकार तथा अर्थालंकार में परस्पर कभी अंगांगिमाव नहीं होगा।)
(४) संदेह संकर में अनेक अर्थालंकार एक काव्यवाक्य में इस तरह प्रयुक्त होते है कि श्रोता को यह सन्देह बना रहता है कि यहाँ अमुक अलंकार है या अमुक । सहृदय श्रोता के पास किस। एक अलंकार को मानने या न मानने का कोई साधक बाधक प्रमाण नहीं होता । ( सन्देह -संकर कभी भी दो शब्दालंकारों का नहीं होता।)
(५) एकवाचकानुप्रवेश संकर में दो या अधिक अलङ्कार एक ही पद ( वाचक ) को अधार बना कर स्थित होते हैं। मम्मट ने यह शब्दालंकार तथा अर्थालङ्कार का मिश्रण माना है । रुय्यक तथा दीक्षित अनेक अर्थालङ्कारों का भी एक वाचकानुप्रवेश संकर मानते हैं।