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(४७) मीलित तथा उन्मीलित (१) मीलित में दो पदार्थों का वर्णन पाया जाता है, इनमें एक प्रधान होता है, एक गौण । (२) इन दोनों पदार्थों में समान गुण (धर्म) पाये जाते हैं। (३) तुल्य धर्म के कारण गौण पदार्थ का प्रधान पदार्थ के द्वारा विगूहन कर दिया जाता है। (४) यह तुल्य धर्म या तो स्वाभाविक होता है या आगन्तुक ।
उन्मीलित :-उन्मीलित मीलित का विरोधी अलंकार है, जहाँ एक ( बलवत्तर ) पदार्थ के द्वारा गौण पदार्थ का निगूहन कर लेने पर भी अनुभविता को किसी विशेष कारण से दोनों पदार्थों का पार्थक्य प्रतीत हो जाता है।
मीलित तथा सामान्य:-दोनों में यह समानता है कि दोनों में ही ऐसे दो पदार्थों का. वर्णन होता है, जिनके तुल्य धर्म के कारण उनका पार्थक्य शात नहीं हो पाता, किन्तु (१) मीलित में बलवान् पदार्थ निर्बल पदार्थ का निगृहन करता है, सामान्य में दोनों समान धर्म के कारण ही एक दूसरे में घुलमिल जाते हैं (२) मीलित में एक वस्तु अन्य का निगूहन कर लेती है अतः दोनों का प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता; सामान्य में दोनों वस्तुएँ प्रत्यक्ष विषय तो होती हैं, किन्तु उनके भेद का-वैशिष्टय का-पता नहीं चल पाता। मम्मट तथा दीक्षित की मीलित तथा सामान्य वाली धारणाओं में भेद है । उक्त विवरण मम्मट के अनुसार है। दोनों के भेद के लिए दे०-हिंदी कुवलयानन्द पृ० २४२ ।
(४८) सामान्य-विशेषक
सामान्य:
(१) इसमें दो समानगुण पदार्थों का वर्णन होता है। (२) समानगुण के कारण एक पदार्थ दूसरे में घुलमिल जाता है। (३) इन दोनों पदार्थों में एक पदार्थ के चिहों का स्पष्ट पता चलता है, अतः उस पदार्थ
की स्पष्ट प्रतीति होती है, दूसरे पदार्थ के विशिष्ट चिह प्रतीत न होने के कारण उसका
भेद नहीं प्रतीत होता। (४) अनुभविता को दोनों पदार्थ दिखाई तो देते हैं, पर उनका भेद नहीं प्रतीत होता। (५) सामान्य में दोनों पदार्थ समानशक्तिक होते हैं, अतः वे परस्पर घुलमिल जाते हैं,
जब कि मीलित में एक पदार्थ बलवत्तर होने के कारण दूसरे पदार्थ को आत्मसात्
कर लेता है। (६) सामान्य अलंकार में कवि का लक्ष्य दोनों पदार्थों की गुणसाम्यविवक्षा होती है। (७) ये दोनों पदार्थ गुण की दृष्टि से एक दूसरे से अभिन्न नहीं होते किंतु कवि अतिशयोक्ति
__ के द्वारा उन्हें अभिन्न वर्गित करता है। विशेषक :-विशेषक सामान्य का उलटा अलंकार है। इसमें किसी विशेष कारण से दो पदार्थों के घुलेमिले होने पर भी उनका व्यक्तिमान हो जाता है । (विशेषक के लिए दे० भूमिका पृ० ३३)