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[ २ ] (४९) उत्तर
प्रथम उत्तर :
(१) प्रथम उत्तर में केवल उत्तरमय वाक्य का प्रयोग होता है । (२) सहृदय स्वयं प्रश्न का अनुमान लगा लेता है ।
( ३ ) प्रायः यह अलंकार शृङ्गारी भावना से संश्लिष्ट होता है ।
( ४ ) यह उत्तर कभी-कभी साकूत या साभिप्राय भी हो सकता है, जैसे पथिक के यह पूछने पर कि नदी को कहाँ से पार करे, स्वयं दूती यह उत्तर देती है - 'यत्रासौ वेतसी पांथ तत्रेयं सुतरा सरित' । यहाँ वक्त्री स्वयं दूती का यह उत्तर 'साकूत' है, वह वेतसीकुञ्ज में स्वच्छन्दता सेकेलि की जा सकती है; इसका संकेत करती है ।
द्वितीय उत्तर :
( १ ) इस उत्तरभेद में एक ही काव्यवाक्य में एक साथ प्रश्नोत्तर शृङ्गला पाई जाती है । ( २ ) इसमें कभी-कभी अन्तर्लापिका या बहिर्लापिका नामक प्रहेलिकाभेद का भी प्रयोग
किया जा सकता है ।
(५०) सूक्ष्म - पिहित
( १ ) इसमें कोई व्यक्ति किसी के आकारादि को देखकर किसी ( २ ) उसे जान कर वह किसी संकेत के द्वारा उक्त व्यक्ति को वह उक्त रहस्य को समझ गया है ।
गुप्त बात को जान लेता है । इस बात को जतलाता है कि
( ३ ) इस संकेत के द्वारा या तो वह उसे रइस्य जानने की सूचना देता है या कभी-कभी उक्त व्यक्ति के संकेतमय प्रश्न का संकेतमय उत्तर देता है । मम्मट ने इन दोनों भेदों में 'सूक्ष्म' अलंकार ही माना है, दीक्षित ने 'पराशय' को जानकर संकेतमय उत्तर देने में तो 'सूक्ष्म' अलंकार माना है, किंतु किसी व्यक्ति के रहस्य को जान कर उसे जान लेने भर की सूचना देने के संकेत में 'सूक्ष्म' का अपर भेद न मानकर 'पिहित' अलंकार माना है ।
(४) सूक्ष्म तथा पिहित दोनों अलंकारों में मूलतः शृङ्गारी भावना पाई जाती है ।
(५१) व्याजोक्ति
( १ ) व्याजोक्ति में सदा कवि से भिन्न किसी पात्र की उक्ति पाई जाती है ।
( २ ) यह उक्ति किसी ऐसी वस्तु से संबद्ध होती है, जिसे वक्ता छिपाना चाहता है, किन्तु किसी तरह वह प्रगट हो जाती है।
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( ३ ) उस उद्भिन्न वस्तु का गोपन करने के लिए वक्ता किसी ऐसे ( झूठे ) कारण को सामने
रखता है, जो उद्भिन्न वस्तु का वास्तविक कारण नहीं होता ।
( ४ ) वास्तविक कारण का गोपन इसलिए किया जाता है कि वक्ता उसके उद्भेद से अपने अनिष्ठ की आशंका करता है ।
व्याजोक्ति तथा अपह्नुति :- अपति साधर्म्यमूलक अलंकार है, व्याजोक्ति नहीं। दोनों में वास्तविकता को छिपा कर अवास्तविकता प्रगट की जाती है, यह समानता है किंतु भेद यह है कि अपति में वक्ता वास्तविकता ( मुखत्वादि) का स्पष्टतः निषेध करता है, जब कि व्याजोक्ति में