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(३) तृतीय विशेष वहाँ होता है, जहाँ एक कार्य को करते हुए व्यक्ति को लगे हाथों दूसरी वस्तु भी मिल जाती है ।
( ४ ) विशेष के तीनों प्रकार अतिशयोक्तिमूलक होते हैं।
(३२) विचित्र
( १ ) विचित्रालंकार में किसी फल की प्राप्ति के लिए किये गये प्रयत्न का वर्णन पाया जाता है।
( २ ) यह प्रयत्न सदा फल से विपरीत होता है। हम देखते हैं कि किसी फल की प्राप्ति के लिए व्यक्ति सदा ऐसे कार्य को करता है, जिससे फल प्राप्ति साक्षात् संबद्ध हो, किन्तु कवि कभी-कभी चमत्कार लाने के लिए किसी फल की प्राप्ति के लिए उसके विरोधी प्रयत्न का वर्णन करता है ।
( ३ ) यह वर्णन श्लिष्ट भी हो सकता है, अश्लिष्ट भी । इलेष पर आश्रित विचित्र अलंकार में विशेष चमत्कार पाया जाता है, जैसे 'मलिनयितुं खलवदनंः' इत्यादि पद्य में ।
( ३३ ) व्याघात
प्रथम व्याघात :
( १ ) प्रथम व्याघात में दो विरोधी साधनों का वर्णन किया जाता है ।
( २ ) इसमें या तो किसी कार्य को करने के लिए एक साधन काम में लाया जाता है, पर वह उससे सर्वथा विरुद्ध कार्य को कर प्रथम कार्य को व्याहत कर देता है, या एक वस्तु से सर्वथा विरुद्ध कार्य को अन्य वस्तु करती है।
(३) इनमें या तो ये दो पदार्थ परस्पर एक दूसरे के उपमानोपमेय हो सकते हैं या प्रतिद्वन्द्वी ।
द्वितीय व्याघात :
( १ ) द्वितीय व्याघात में कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए किसी प्रकार की क्रिया को ढूंढ निकालता है ।
( २ ) पर अन्य व्यक्ति उसी क्रिया को उक्त कार्य का विरोधी सिद्ध कर देता है।
( ३४ ) अधिक - अल्प
अधिक :
( १ ) इसमें कवि सदा दो पदार्थों का वर्णन करता है, जिसमें एक आश्रित होता है,
अन्य आश्रय |
( २ ) कवि या तो आश्रित ( आधेय ) की अधिकता का वर्णन करता है, या आश्रय ( आधार ) की ।
३) कवि का ध्येय इस वर्णन के द्वारा प्रकृत की महत्ता बोतित करना है ।
( ४ ) प्रायः प्रकृत आश्रित होता है, किन्तु कभी-कभी वह आश्रय भी हो सकता है ।
(५) एक की अधिकता के वर्णन से अन्य पदार्थ के आधिक्य की भी व्यंजना कराना कवि का लक्ष्य है।