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[८४ ] (२) प्राचीन विद्वानों ने 'सम' एक ही तरह का माना है-प्रथम विषम का उलटा अर्थात 'अनुरूपयोः संघटना' का वर्णन ।
(३) दीक्षित ने द्वितीय तथा तृतीय विषम के आधार पर उनके विरोधी द्वितीय तथा तृतीय सम की भी कल्पना की है, जहाँ कार्यकारण की गुणक्रिया का साम्य तथा इष्टावाप्ति एवं अनिष्टान वाप्ति का वर्णन किया जाता है । इस भेदकल्पना से पंडितराज जगन्नाथ तक सहमत हैं ।
(२७) काव्यलिंग (१) काव्यलिंग वाक्यन्यायमूलक अलंकार है ।
(२) यहाँ कवि अपने द्वारा वर्णित किसी तथ्य की पुष्टि के लिए किसी वाक्य या पदार्थ का हेतुरूप में उल्लेख करता है।
(३) काव्यलिंग का हेतु अनुमान अलंकार के हेतु की भाँति व्याप्ति या पक्ष-धर्मतादि से युक्त नहीं होता, साथ ही इसका प्रयोग तृतीया या पंचमी विभक्ति में कभी नहीं होता। यदि कवि अपने तथ्य को स्पष्ट करने के लिए हेतुसूचक तृतीया या पंचमी का प्रयोग कर देता है अथवा 'हि' 'यतः जैसे उक्तार्थोपपादक पदों का प्रयोग कर देता है तो वहाँ काव्यलिंग अलंकार नहीं माना जाता। भाव यह है, काव्यलिंग में हेतुत्व की व्यंजना कराई जाती है, स्पष्ट रूप से उसका हेतुत्व अभिहित नहीं किया जाता।
(४) वाक्यार्थ काव्यलिंग में सदा दो वाक्य होते हैं, जिनमें एक वाक्य दूसरे वाक्य का हेतु होता है, तथा इनमें यतः, यस्मात् आदि का प्रयोग नहीं होता।
काम्यलिंग तथा अर्थान्तरन्यास:-वाक्यार्थगत काव्य लिंग तथा अर्थान्तरन्यास में एक समानता पाई जाती है कि दोनों में एक वाक्यार्थ दूसरे वाक्यार्थ की पुष्टि करता है। इस दृष्टि से दोनों में ही समर्थन पाया जाता है। किंतु (१) काव्यलिंग में किसी तथ्य का समर्थन किसी विशेष हेतु के द्वारा किया जाता है, जबकि अर्थान्तरन्यास में विशेष का सामान्य के द्वारा या सामान्य का विशेष के द्वारा समर्थन किया जाता है। इस प्रकार काव्यलिंग में दोनों वाक्यों में परस्पर कार्यकारणभाव होता है, अर्थान्तरन्यास में सामान्यविशेषभाव । विश्वनाथ ने इसीलिए अर्थातरन्यास में समर्थक हेतु माना है, काव्यलिंग में निष्पादक हेतु । (२) काव्यलिंग में दोनों वाक्य प्रस्तुतपरक होते हैं, जबकि अर्थातरन्यास में एक वाक्य प्रस्तुतपरक होता है, अन्य अप्रस्तुतपरक।
कायलिंग तथा अनुमान :-दोनों में तथ्य की सिद्धि के लिए हेतु का प्रयोग किया जाता है, किन्तु (१) काव्यलिंग में कार्यकारणभाव व्यंग्य होता है, अनुमान में साध्यसाधनभाव वाच्य होता है, (२) काव्यलिंग में हेतु निष्पादक ( या कुछ विद्वानों के मत से समर्थक ) होता है, अनुमान में हेतु शापक होता है।
( २८ ) अर्थान्तरन्यास (१) अर्थान्तरन्यास में परस्पर निरपेक्ष दो वाक्यों का प्रयोग होता है।
(२) इनमें एक वाक्य सामान्यपरक होता है, अन्य विशेषपरक । इस प्रकार या तो सामान्य का विशेष के द्वारा या विशेष का सामान्य के द्वारा समर्थन पाया जाता है। इनमें एक प्रकृत होता है, अन्य अप्रकृत । प्रकृत सदा समर्थ्य होता है, अप्रकृत समर्थक । कभी-कभी दोनों पक्ष प्रकृत भी हो सकते है।