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मीर, बीकाम है मान्य का मुख्य रस शान्तरस हो है । जिनदत्त वणिक - पुत्र है। विवाह होने के पश्चात् वह् व्यापार के लिये देशाटन को निकल जाता है और उसमें प्रपार सम्पत्ति अर्जन कर वापस स्वदेश लौट आता है । राजा चन्द्रशेखर और उसकी सेनाओं में जो युद्ध की आशंका होती है वह केवल आशंका मात्र बन कर ही रह जाती है। हाँ इतना अवश्य है कि जिनदत्त मी अपने ऐश्वर्य एवं विद्याओं के बल पर चन्द्रशेखर की उपस्थिति में प्राषा राज्य और उसकी मृत्यु के पश्चात् संपूर्ण राज्य का एक मात्र स्वामी बन जाता है । लेकिन इस परिवर्तन में खून की एक धारा भी नहीं बहती तथा न चन्द्रशेखर और न जिनदत्त को हथियार उठाने की आवश्यकता पड़ती है । अन्त में वह वैराग्य धारण कर स्वर्ग लाभ करता है ।
श्रमार रस का वसंत विमलमती के सौन्दर्य दर्शन करने के प्रसंग में हुआ हैं । कवि ने विमलमती की सुन्दरता का अच्छे एवं प्रलंकृत शब्दों में वन किया है। उस का वर्णन करते हुये कवि कहता है कि वह श्रनिद्य सुन्दरी थी। हंस के समान उसकी गति थी। वह क्रीडा करती हुई, सरोवर तट पर बैठी हुई और जल से खेलती हुई रूपराशि लगती थी । उसकी पिण्डलियों में सभी वर्ण शोभित थे मानो के कंधु की पिडलिया हो । कदली के समान उसकी जां थी तथा उसकी कटि में समा जाने वाली थी। वह मानों कामदेव का छत्र थी। उसका शरीर चंपा के समान था । वह पीन स्तनों वाली थी । उसकी उदर की पेशियों एवं कटितल फैले हुये थे। चन्द्रमा के समान उसका मुख था। उसके नेत्र दीर्घ थे तथा वह मृगनयनी थी। उसके शरीर से
सोजि सुन्दरी या पुत्तार |
लंतिय हंस गए कीलमारण सरवर वइटी ।
खेलती जल पयउ रूप रासि मह विशिय ||
अन्त्रीस