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विवाह वर्णन
हुई है। (इसके अनन्तर) उसने प्रस्यधिक रूपवती तथा मुन्दर तारिकानों के मैत्रवाली विमलमती नारी को (पट्ट पर) लिखा (चित्रांकित) देखा १११७।।
1 ११८-११६ ]
पुण जइ देखइ नारि गुजंग, काम वारण धाय सव्वंग ॥ अतुल महावल सम्हर धोर, गउ मिहलंघस सामु सरीर ।। भरणा सेठि हमु हुहहइ सोगु, करहु विवाह हंस जिण लोमु । जे र विजाहरि सहि रासि, प्रवास करम तोहि परि पासि ।।
अर्थ:-जब उसने गुण सम्पन्ना उम स्त्रो (विमलमती) को देखा तो उमके सर्वांग को काम बागर ने बेच दिया । वह असुल महा बसवान एवं धीर साहूकार था किन्तु (उप नारी के चित्र को देखने ही) पह सरीर से विह्वलाङ्ग हो गया।
सेठ ने कहा रहे पुत्र, तुम्हारी इस दशा से) हमें तो दुःख होगा। तुम विवाह करो, जिससे लोग हंसी नहीं करें। यदि यह विद्याधरी तथा रूप की रापिप है तो भी उसे अवश्य ही तेरे घर की दाम्रो बनाऊग" ।।११६॥
साहर । साहार । साधृकार / साहूकार-महाजन ।
[ १२०-१२१ । सहि सेलि धरि उछर कियउ, साहु परियल न्योते पाइयो । पंच समय बाजेषि तुरंतु, बहु परिवरा पाले सु वरातु' । एकत्ति जाहि सुखासरण बढे, एकतु वाखर भोडे पुरे। मनु साजित सिगरी घरी, एकाणु साजि पसारणी बरी।। अर्थ :-तव सेठ ने अपने घर में उत्सब किया । (जममें) समी परिजनों
१. बरात - मूलपाछ ।