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विवाह वर्णन
चउरी रत्रीय हरिए वास, अरु तह थापे पुष्ण कलास । गावहि गीतु नाइका सउकु, चउरी पूरित मोतो अउकु ॥
अर्थ :-विमल सेठ (परिजनों से) कहने लगा, आप ऐसा करें कुमार एब बरात (को लेकर) सब जीमने चलें । हे सुभटो, उठो और जीमणावार जीमो क्योंकि फिर लग्न का समय हो जावेगा ॥१२॥
हरे बांस को चंवरी (वैदिका) बनायी गयी और वहां पुष्प कलश स्थापित किए गाए । स्त्रियाँ उत्साहपूर्वक गोत गाने लगी तथा उन्होंने स्वरी वे. वीच मोतियों का चौक पूरा ।।१२५ ॥
जेवण - जीमन । सुहड - सुभट । लसुण - लग्न । पुणण – पुण्य. पवित्र । नाहका - नायिका-स्त्रियाँ । राउका - सउत्क - उत्साहपूर्वक ।
भयो विवाह विमल कसु किग्ण, प्रगनिज दाम' दाइजो विष्ण । समयो विमलमती विलखाइ, लह विवाह वसंतपुर जाई ।। घरह आइ ते कहा कराइ, चढिवि प्रवास भोग विलसाइ । राज करत दिनु केतकु गयो, एतहि अवरु कथंतर भयो ।
अर्थ :--विवाह सम्पन्न हुआ तथा विमल सेठ ने दहेज में प्रगगित अन्य दिया । उसने कुमारी विमलमती को बिलखते हुए विदा किया अथवा समयी (याही) विलावती हुई विमलमनी को लेकर विवाह के पश्चात् बसन्तपुर के लिए रवाना हो गये ।। १२६।।
घर जाकर उन दोनों ने क्या किया। वे अपने महल में रह कर भोग भोगने लगे। इस प्रकार राज्य करते हुए (मानन्दपूर्वक जीवन व्यतीन करते हुए) कितने ही दिन व्यतीत हो गये। इसके पश्चात् कथा का प्रवाह दूसरी ओर मुड़ा।
१. मूलपाठ - दारा ।