________________
HTA उद्दिमु करहि जे साहसु करहि, घोरे होर दिसंतर फिरइ । विढइ लछि जे पुरवहि प्रास, जाए गुरिष यहि स मास ॥
अर्थ :-जो पुरुष धीर, वीर एवं गम्भीर होते हैं वे परदेश जाकर घन कमाते हैं । जो धन कमा करके उसकी वृद्धि नहीं करते हैं वे पुरुष क्यों नहीं जन्म ग्रहण करते ही मर जाते है ।।१३।।
जो साहस करके पुरुषार्थ करते हैं तथा धीरतापूर्वक देशान्तरों में फिरते हैं, तथा जो लक्ष्मी कमा कर पाशा पूर्ण करते हैं ऐसे ही लोगों को दस मास सक माता के गर्भ में रह कर उत्पन्न होना उचित मानना राहिए ॥१३६॥
[ १४०-१४१ ] ला विवाह न विसंतर फिरइ, दान परम उपगार नु करहि । विहिं न किसहि पातको लोण, बइठे राखहि घर के कप' ॥ णासत घर बैठे सु खियाहि, पारिणऊ पिवहि वार चज खाहि । प्रांस पराई करद जू मुयउ, सोभित न पूतु गरभ ही सुपर
अर्थ:--जो न धन कमाते हैं और न किमी देशान्तर में जाते हैं तथा न दान, घर्म एवं परोपकार करते हैं। ऐसे पापी किसी को नमक भी नहीं देते हैं, और वे केवल घर के कोने में बैठ कर रखवाली करने हैं ॥१४०।।
बैठे बैठे घर को नष्ट करते हैं और भय को प्राप्त होते हैं । उनका कायं केवल पानी पीना तथा चार २ बार खाते रहना है । जो दूसरों को पाशा करते हैं वे मरे हुगे हैं । ऐसा पुत्र (मी) शोभित नहीं होता, यह परी मानों गर्भ में ही मर गया हो ।।१४१।।
दिमतर - देशान्तर । उपगार - जपकार । लोणु - लवण, नमक । मार च3 - चार वार !