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जिणदत्त चरित
मर्थ :-"मुझे मेरी मां ने बड़ी आशात्रों से पैदा किया था । उसे छोड़ कर विदेश में क्यों कर गया ? हे देव ! मेरा बच का हृदय नहीं फटता है । मेरे बिना मेरे पिता भी किसी प्रकार मान रहा ।
___ "मैंने बहुत से देश और नगर देते तथा अनेक समुद्रों एवं दीपों की यात्रा की । विदेश भ्रमण करते हुये बारह वर्ष बीत गये, पता नहीं मेरे माँ-बाग का क्या हुआ" ॥३८६
[ ३६०-३६१ ] इहा पररणी विमलामती, सिंघल बीपि सिरियामती । पुरिण परिणिय विज्जाहरि, सो कह लड़ पायच चंपापुरी ।। विमलसेठि देव तणइ बिहारि, मई तु सुसाइय तीनिउ नारि । को तहि मरद यहतु काह वत्त', ते सीनिउ सु अम्हारी कलत ।।
अर्थ :-"यहां मैंने त्रिमलमती के साथ विवाह किया तथा रािहल द्वीप में श्रीमती के साथ (विवाह किपा) । फिर विद्याधरी स्त्री रो विवाह किया और उसको चंपापुरी लाया" ।।३६०॥
"विमल सेठ के जिन मन्दिर में मैंने जिन तीनों स्त्रियों को बुलाया था वे तीनों ही मेरी पत्नियां हैं" लेकिन बहुत सी बातें कह कर कोन मरे ? (कहने से क्या मतलब)।।३६१॥
१. मूल पाठ - 'चाल'
। ३६२-३१३ । जे से बछ तुम्हारी नारि, किम पत तो मिलधर वइसारि । फुडउ वयण जा यह तुम्हि देत, इह तुतु काइ विवाह बीस ।। जइ ते कहि हमह पिंउ पाहि, बीस फुर्मार मांगर कनु पासि । एक कुमरि बइ सहि न जाहि. वीस कि तीस विवाहहु काहि ।।