Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur
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मंत = मंत्रणा - २४४, अादि । रसिप ति = कामदेव - ५४३, मंति = मंत्री - २०५,
रधनुहि - स्थनपुर - २६७, मंतिहि = मंत्रियों - ३६९, आदि, रमइ = रमने लगे - ७३, ७६, मंदर = महल - ३६,
रमायरा = रामायणा - ६४, मदार =
- १७४, 1 रजय = रचना करना -२५,५५०, मंदिर - प्रावास, महल - ८६, रयण : रत्न - ४१, १३४, प्रावि, मंदोदरि = मंदोदरी - २७५, रयणन - रत्न को - २६८, मंस = मांस - ३६,
रमणह -
-४६०, मंसु = मांस + ५१०,
रपरणाई = रत्नादि - ५२३, मंत्र = मंत्रणा - ३६४,
रयण्णाह = रश्नों को - २४१, मंत्री = मंत्री (सचिव) - २०३, रयरिण = रात्रि - ३०७,
रयणी = रल - २३६, रमणु = रत्न - २६२ ३७३, श्रादि,
रयवर = काम - ५३६, यह = यहाँ - ४३२, ......... आदि, रल्ह = 'कवि का नाम' - १५, प्रादि, यह रही - हरी होना - १६४, रविधाम - मूर्य के प्रकाश में - ३७६, यहि =
-१३६. रस = -७६, यौं = इस प्रकार - १७,
[ रसरण = रसना - २८८, रस = रस - २८९,
रघ्या - रक्षा -११, रई - रत्री - १६८, ....... श्रादि,
रहइ = -- १५१, १५, प्रदि, रजद = रौद्र - ५२२
रहणु = रहना - २५४, रखहि -
-४६२, रहस - सुख - १६५, रबउ = रमना करना - १६, रहहि = रहना - २८, रचीय =
- १२५, रहाव - सात्वना - ३१६, रथे - ४५७, रहि =
-४६१, रजउ =
- १८१, रहि = उरखा - २७, ....... 'आदि, उइ = रुदन - १५५,
रहिय = रहना -- २५८, .....'आदि, रडिया = रोने लगी - १५४, रही = रहना -- ३३१, ..... प्रादि, ररिंग = युद्ध में - ५३६,
रहे म्हु = नप रहो -२१५, २३०, २६६ - ४८०,
रहे = रहना - १७०, ३४८, मादि, रतन =
- १३५, रा:- राजा - १६२, ...... ..मादि,
रणु =

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