Book Title: Jindutta Charit
Author(s): Rajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
Publisher: Gendilal Shah Jaipur
View full book text
________________
सुइरी = स्मरण करना – ३५२, । मुतउ = सूता हा – २२७, सुइ छिइ = स्वइच्छित - २८७, सुसधार = सूत्रधार - १०३, १०६, मुत = मुत - १, २१६,
सुनधारि = " - ७८, ८४, सुका = सुकषि - १५, १६, "प्रादि, | सुतधारी - , - १०, मुकीठ = कठिनाई से मिलने योग्य-१७६/ सुतमज = - २७१, सुकुमाल = सुकोमल - ३०६, सुत्तारि = सुन्दर तारिका - ११७, सुरुक = शुक्र - १३.
सुसु = पुत्र -- सुक्केज = सुकेतु - ५०८,
सुदत्तह -
- ५३७, मुख = - ४३७,
सृदत्त - सुदत्त - १८०, ५०.६, मुखरू - - ५३४,
मदि :- शुक्लपक्ष – २६, सुखसरइ = सुख प्राप्त होना - २०८,
सुद्ध -
- ४७३, सुखसेरणवलि = सुखसमनानली - २७५
सुद्धा = - ४६८, सुखासण = पालकी - १२१, १२८,
मुद्धि = शुद्ध - ६६, सरिन =
- ३५, | सुघउ = -१८, सुन्हियार - सुखी होना - ३०३, सुधांत = धारण करना - २८०, सुख =
- २२४, सुनत = - ५४६, सृगुणगुण = सद्गुणों वाला - ४००,
सुन्दरि =
- २२१, सुवंगु = चंगो, अच्छे स्वास्थ्य वाली
सुनहि = सुछिउ = छोड़कर - २२१, सुनहु = सुनो - १५७, सुजारा - सुजान - ३०४,
सुनि = -३००, मुजाणु -
- ४४१,
सुनि उ = सुना - २५६, मुः = सुन्दर - १८१,
मुन्हि ८ ,, - २००, मुठि = ॥ - ४००
सुगत्तर = सुपात्र - १४२, सुठु = || - १८१, ४१०, आदि,
सुप्पहु = सुप्रभ - ५०६. सुरण
-२०६, ३०२, सुपास - सुपार्श्वनाथ - ४, सुगइ = मुना - ३१७, ५५१, सुपियार = प्रेम सहित – ४२, २०२, सुबह =
- २५०, सुघात = बार्ता – ३४१, मुरणहि = सुनो -- ३०३, ३६३, मुमइ - मुमति -- २७४, मुणी = - २१३, सुमइनाहु = सुमतिनाथ – ३, सुरणेइ =
२४५, सुमइल = मुमति - २७८, सुरणेहि = सुनो - ४७१, ५१७, सुमसि =
- २२८, ४६१, | सुमयादेवि = 'सुमया' देवो - २७३,
- १५३,

Page Navigation
1 ... 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296